गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

भागवत भूमि यात्रा पर विमर्श

पुस्तक चर्चा में भाग लेते लेखक 

पुस्तक चर्चा में भाग लेते लेखक 

पुस्तक चर्चा प्रसंग  

हिंदी के कालजयी रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय ने दो ऐतिहासिक यात्राएं संपन्न करवाई थीं. पहली यारा " जानकी" थी. दूसरी यात्रा "भागवत भूमि यात्रा" थी. अज्ञेय ने अकेले ही जिन  यात्राओं  को पूरा किया था उनके नाम हैं "अरे यायावर रहेगा याद" और "एक बूँद सहसा उछली". भागवत भूमि यात्रा में अज्ञेय के साथ हिंदी के ग्यारह बड़े रचनाकार सहयात्री थे - मानिकलाल चतुर्वेद, विद्यानिवास मिश्र, भगवतीशरण सिंह] मुकुंद लाठ, रमेश चन्द्र  शाह, इला डालमिया, विष्णु कान्त शास्त्री, नरेश मेहता,  रघुवीर चोधरी, जडावलाल मेहता. अभी हाल ही में इस यात्रा का विस्तृत विवरण ख्यात आलोचक डॉ. कृष्ण दत्त  पालीवाल ने "भागवत भूमि यात्रा" पुस्तक में संपादित किया है. इंदौर में इस पुस्तक पर चर्चा  आयोजित  हुई. इस पुस्तक चर्चा में शहर के अनेक रचनाकाओं  ने भाग लिया -  चैतन्य त्रिवेदी, डॉ. जवाहर चौधरी , चन्द्रभान भारद्वाज,विकास  दवे, हरेराम  वाजपयी, रामचंद्र सौचे, नंदकिशोर वर्वे, रामचंद्र अवस्थी, गिरेन्द्र  सिंह भदौरिया , अरविन्द  जावलेकर, सुधीन्द्र  कमलापुर, मोहन रावल, श्रीमती नियति सप्रे, सुख देव  सिंह  कश्यप, वसंत सिंह जोहरी, नारायण प्रसाद शुक्ला, इसहाक असर और  श्याम दांगी.रचनाकारों नें माना कि यात्राएं लेखन  कर्म को गहराई देती हैं .जन और जीवन की समझ यात्राओं सी पैदा होती है . भक्ति काल के सभी कवि निरंतर यात्रों पर रहते थे परिणाम स्वरुप  उनकी रचनाओं में मानव ही नहीं बल्कि पूरी कायनात का दुःख- सुख बोलता है .और इसी लिए आज भी वे सब पूरी तरह प्रासंगिक हैं . शायद अज्ञेय भी रहनाकारों को इसी उदेश्य से देश के विभिन्न प्रान्तों की यात्रा करवाना चाहते थे . पुस्तक चचा में भाग लेते हुए सभी ने माना के इस पुस्तक का सम्पादन कर डॉ क्रष्ण दत्त पालीवाल ने हिन्दी साहित्य को अमर क्रति दी है . वास्तव में अनेक सन्दर्भ इस पुस्तक में मौजूद हैं . युगों - युगों की गाथा समझनें के लिए यह पुस्तक हमारी बहुत मदद करती है .


मंगलवार, 17 जनवरी 2012

फिकरमंद पति

   श्री प्रमोद कुमार  श्रीवास्तव ,  अपर आयुक्त , कर्मचारी राज्य बीमा निगम कानपुर ,की  यह कहानी  दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में भी प्रकाशित हो चुकी है . लेखक  सामाजिक विसंगतियों पर कहानी लिखने  में सिद्ध  हस्त  है . उनकी  अब तक अनेक कहानियां देश की अनेक  पत्र - पत्रिकाओं  में प्रकाशित हो चुकी  हैं . अपने ब्लॉग पर इसे आभार सहित प्रकाशित कर रहे हैं .
                                        

बह की इंटरसिटी में मैं अपनी सीट पर बैठा ही था कि बगल की सीट पर एक पैंतीस वर्षीय नौजवान आ गया। स्मार्ट, करीब 6 फिट लम्बा। ट्रेन चली तो हम अपने-अपने अखबारों में डूब गए। सुबह जल्दी उठने के कारण नींद-सी महसूस होने पर मैं झपकी लेने लगा। कुछ देर बाद पड़ोसी युवक भी खर्राटे भरने लगा। सहसा उसके मोबाइल की घंटी से नींद खुल गयी। वह कह रहा था, क्यों तीन दिन बाद फोन करने का टाइम मिला। बन्द करो, मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है। चन्द मिनटों के अन्तराल पर पुन: घंटी बज गयी। मोबाइल कान में लगाते हुए उसने कहा, मेरा मूड ठीक नहीं है, तुम मेरे से कोई बात मत करो। मेरा दिमाग पिताजी की बरसी में लगा है। वहां जाकर तुम लल्ली, मां-बाप में ऐसी मस्त हो गयीं कि तीन दिन बाद बात करने की फुरसत मिली है। उधर से महिला के कुछ कहने पर युवक ने कहा, ज्यादा बक-बक करोगी तो आकर ऊपर छत से फेंक दूंगा, मर जाओगी समझी! कहकर फोन काट दिया। मुझे लगा, महिला के तीन दिन तक फोन न करने से युवक आहत है। कुछ देर शान्ति रही, ट्रेन बस्ती स्टेशन पर रुकी। युवक ने किसी को फोन मिलाया, घर को साफ कराकर, छिड़काव करा देना। मैं घंटे-दो घंटे में पहुंच रहा हूं। मुझे लगा या तो कोई कान्ट्रेक्टर होगा या कोई जे.ई.। इसी बीच उसे लगा कि कोई मिसकाल हो गई क्योंकि उसने तुरन्त फोन लगाया, मैंने तुमसे कहा न, कोई बात नहीं करनी है। फिर कुछ देर युवक फोन सुनता रहा। उस महिला ने क्या कहा, युवक बिफर उठा, तुम्हारे में हिम्मत हो तो जहर खाकर मर जाओ। बच्चों को भी जहर खिला दो। मैं दूसरी शादी कर लूंगा। मुझे लगा नौजवान अपनी पत्नी से बात कर रहा है एवं उसे सुसाइड करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। नासमझ! यदि वह सचमुच आत्महत्या करने से पूर्व कोई सुसाइड नोट लिख गयी तो दूसरी शादी के स्वप्न धूल में मिलने के साथ पूरी जवानी जेल में सड़ जाएगी। पत्नी के कुछ कहने पर युवक बोला, तुम झूठी, तुम्हारे मां-बाप झूे, तुम्हारा तो पूरा खानदान झूठा, पंडों के घर शादी किया हूं तो उसका फल भोगना पड़ेगा। सुन, तुमको वहीं सड़ना है। आठ-नौ महीने मैं तुमको लाने से रहा। रुद्रपुर गयी हो न! गर्मी में मर जाओगी। न इनवर्टर, न बिजली। कितनी बार समझाया, गर्मी में गोरखपुर रहो, जाड़े में सण्डीला। बात कुछ और साफ हो गयी। युवक का घर गोरखपुर, ससुराल रुद्रपुर एवं कार्यस्थल सण्डीला था। फोन पर बात बन्द हो गयी। थोड़ी देर बाद युवक उठा टायलेट चला गया और मैं पुन: सोने की कोशिश करने लगा। टायलेट से लौटकर वापस युवक अपनी सीट पर बैठ गया। मोबाइल का कार्ड कान में लगा गाना सुनने लगा। उसे कुछ ध्यान आया। किसी को फोन लगाया। निर्देश दिया, आज टेण्डर मिलने वाला है, सण्डीला चले जाओ। किसी का नाम लिया, उससे अपने मोबाइल पर बात करा देना। टेण्डर लेने से मना कर दूंगा। मुझे महसूस हुआ, टेण्डर मैनेज किया जा रहा है। युवक का मोबाइल फिर बजा। कुछ देर बात सुनता रहा। फिर उसने कहना शुरू किया- तुम्हारे बिना भी मेरे बच्चे पल जाएंगे। मेरे घर वाले बहुत अच्छे है। कल ही वर्मा जी कह रहे थे, तुम्हारा छोटा भाई बच्चों का बहुत ध्यान रखता है। तुमको क्या पता? दो दिन से स्कूल घूम-घूम करके पार्थ के एडमिशन कराने की बात कर रहा था। बड़ी मुश्किल से बच्चों को पाला जाता है। उधर से पत्नी ने फिर कुछ कहा। युवक बोला- तुम्हें मोबाइल एक-दो दिन में मिल जाएगा। फिर फोन काट दिया। तभी किसी दूसरे का फोन आ गया। युवक शुद्ध भोजपुरी में बात करने लगा, अपनी के गाड़ी देख लिहलीं। सुंदर लगती बा न। गाड़ी अपने चला के जइबैं। छोटू के चलावे के मत देवंै। अच्छा, सुनी रजिस्ट्रेशन में 5 अंक के जोड़ वाला नम्बर लेइब। जइसे 1823, कुल जोड़ के पांच। पांच हमार लकी नम्बर बा। फिर उसे कुछ याद आ गया। किसी को फोन लगाकर प्रणाम किया, रऊआ के धन्यबाद दिहल भूल गइल रहलीं। अरे, कामिनी कै मोबाइल न पहुंचवले खातिर धन्यबाद। लगा कुछ टांट मार रहा है। फिर हंसते हुए कहा, आज कल में कामिनी कै मोबइलवा भेजवा दिहल जाई। शायद उसकी पत्नी का नाम कामिनी था। गोंडा स्टेशन बीत चुका था। ट्रेन करीब आधे घंटे लेट हो चुकी थी। मैं युवक की बात सुनने में ऐसा तल्लीन था कि पेपर पढ़ना भूल गया। युवक के व्यक्तित्व का एक-एक पन्ना प्रत्यक्ष समाचार था। इसके सामने अखबारों में छपे समाचार फीके लग रहे थे। उसे मोड़कर अगली सीट के पाउच में रख दिया था। उसके मोबाइल की घंटी ने मेरा ध्यान पुन: उसकी ओर खींच लिया। कुछ देर तक फोन सुनने के बाद, वह कहने लगा, मेरे जैसा हसबैंड तुम सौ जन्म लोगी तब भी नहीं मिलेगा। मेरे जैसा केयरिंग पिता, बेटा, दामाद सौ जन्म में भी नहीं मिलेगा। कौन अभागा हसबैंड नहीं चाहेगा कि उसका परिवार उसके साथ रहे। यही सुनना चाहती हो न। मैंने तुमको इतना सुंदर हार खरीदकर दिया। तुमने एक बार भी थैंक्यू बोला? हरामखोर! अब उसको बक्से में रख देना। पहनना मत। कामिनी ने कुछ उत्तर दिया। शायद वह निरन्तर वार्तालाप जारी रखना चाहती थी। युवक खिसियाया जैसा लग रहा था, तुम्हारे घर वालों को दामाद की इज्जत करना भी मालूम है? मुझे पैसों का कोई लालच नहीं है, तुमको मालूम है। घर का दामाद हूं, फलदान चढ़वा रहे हैं, एक बार भी पूछा- कैसे क्या करना है? मेहमानों को खाना भी नहीं खिलाएंगे। छोड़ो तुम कुछ मत कहना। जैसा चाहें करें। मैं तो इनकी इज्जत बढ़ाना चाहता था। देखो तुम्हारे घर में केवल सन्नो ही सुलझी हुई है। उसी की मैं इज्जत करता हूं। फोन डिसकनेक्ट हो गया। सन्नो उसकी प्यारी साली है, यह भी मुझे ज्ञात हो गया। ट्रेन बाराबंकी पार हो चुकी थी। अभी लखनऊ पहुंचने में लगभग घंटे भर लगने की संभावना थी। इस बीच युवक की किसी दूसरे से मोबाइल बात शुरू हो गयी। युवक ने उसे दस-पन्द्रह मिनट में लखनऊ जंक्शन पर बुलाया। सुबह से कुछ नहीं खाने के कारण मुझे भूख लग गयी थी। ट्रेन के बादशाहनगर स्टेशन पर रुकते ही अधिकांश लोग उतर गये। मैं अपना ब्रीफकेस ऊपर से उतारकर दूसरी सीट पर बैठ बिस्कुट खाने लगा। मन उसी में उलझा था। उतरने से पूर्व मैं उस युवक के पास पुन: गया, माफ करना, किसी की बातों को सुनना या व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करना अच्छी बात नहीं है। लेकिन, आप इतनी जोर-जोर से बातें करते रहे कि मैं सब कुछ सुनने के लिए मजबूर था। मेरी एक बात अगर बुरी न लगे तो कहूं? उसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी। मैं दालभात में मूसलचंद था। उसके मौन को स्वीकृति समझते हुए मैंने कहा, तुम एक केयरिंग पिता, पति या पुत्र हो या नहीं, मुझे मालूम नहीं। कामिनी को तुम्हारे जैसा हसबैंड सौ जन्म में भी शायद न मिले, परन्तु तुम्हारी कामिनी सचमुच सहृदय, सहनशील एवं समझदार है, जो इतनी सारी लमतरानियों को निरन्तर सुनती रही और फोन करती रही। यदि वह आत्महत्या कर लेगी, ईश्वर न करे ऐसा हो तो तुम्हें इस कामिनी को पाने के लिए सौ जन्मों का इन्तजार करना पड़ेगा। ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे। मुझे लगा कि युवक को कुछ ग्लानि महसूस हुयी। उसने हथेलियों में अपना चेहरा छुपा लिया और सिसकियां भरने लगा। तब तक ट्रेन रुक चुकी थी। मैं स्टेशन पर उतर गया।
                      कर्मचारी राज्य बीमा निगम, पंचदीप भवन, सर्वोदय नगर कानपुर-208005