आज कल भाषा , साहित्य और समाज पर चिंताएं की जारही हैं। शनिवार को उज्जैन के माधव कालेज के हिंदी विभाग द्वारा इसी विषय पर सेमिनार था। एक वक्ता के रूप मेंमुझे भी विचार प्रकट करने का अवसर मिला। ख्यात आलोचक डॉ विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता थी।
जनसता के रविवार १२ जनवरी के अंक में श्री अशोक बाजपेई के लेख 'स्वतत्रता , लोकतंत्र और बहुसमयता' में भी इसी तरह की चिंताएं प्रकट की गयी हैं।
इंदौर के रंग प्रकाशन और शासकीय अहिल्या पुस्तकालय दुआरा ''हमारा समय और साहित्य '' विषय १७ जनवरी को शाम ६.३० बजे आयोजन रखा गया है। वक्ता आलोचक डॉ विजय बहादुर सिंह होंगे। विषय पर मुझे भी विचार करने है। इस समय हमारे लेखक जीती चिंताएं प्रकट कर रहे हैं उतनी ही चिंताएं अगर देशकी संसद और विधान सभाएं करनें लगें और साथ ही अभिनेताओं जिनका, अनुकरण नई पीढ़ीबहुत ज्यादा करती है ,का भी सेहयोग मिल जायें तो रंगत बदलते देर न लगेगी ,
जनसता के रविवार १२ जनवरी के अंक में श्री अशोक बाजपेई के लेख 'स्वतत्रता , लोकतंत्र और बहुसमयता' में भी इसी तरह की चिंताएं प्रकट की गयी हैं।
इंदौर के रंग प्रकाशन और शासकीय अहिल्या पुस्तकालय दुआरा ''हमारा समय और साहित्य '' विषय १७ जनवरी को शाम ६.३० बजे आयोजन रखा गया है। वक्ता आलोचक डॉ विजय बहादुर सिंह होंगे। विषय पर मुझे भी विचार करने है। इस समय हमारे लेखक जीती चिंताएं प्रकट कर रहे हैं उतनी ही चिंताएं अगर देशकी संसद और विधान सभाएं करनें लगें और साथ ही अभिनेताओं जिनका, अनुकरण नई पीढ़ीबहुत ज्यादा करती है ,का भी सेहयोग मिल जायें तो रंगत बदलते देर न लगेगी ,