स्त्री मांग में भरते ही सिन्दूर वह हो जाती है वेखौफ
उस पुरुष से
जैसे होता है कोई मालिक
अपने पालतू पशु के साथ
भरते ही मांग में सिन्दूर पुरुष समझनें लगता है स्त्री को एक सड़क मांग में भरा गया सिन्दूर व्यापारिक समझुअते के हित हुए हस्ताक्षर सा नहीं चुटकी भर सिन्दूर में छिपा होता है चुरासी लाख जन्मों का सारांश
मनुष्य को प्रकृति कुमार कहा गया है . प्रकृति की गोद में ही उसनें आखें खोली थी . प्रकृति की बाहं पकड़ कर चलना सीखा .प्रक्रति के साथ बोलना सीखा .भाषा का जन्म भी प्रक्रति की गोद में ही हुआ है . ऐसा क्या है जो प्रक्रति ने मनुष्य को नहीं दिया है. प्रकृति का शिशु कहलाने वाले इस मनुष्य ने अपने स्वार्थों के लिए इसी का गला गोट्ना शुरू कर दिया . आज सबसे अधिक संकट में यदि कोई है तो वह है , प्रक्रति . वायु संकट में है , जल काँप रहा है , निरंतर कम होते जा रहे जल के कारण आदमी के अस्तित्व को संकट खडा हो गया है . ध्वनि प्रदूषण के कारण आकाश अशांत है . जमीन की पीड़ा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता . निरंतर खनन के कारन प्रथ्वी भीषण चीत्कार कर रही है . हमारे पुरखों ने प्रथ्वी को माँ कहा और आकाश को पिता की संज्ञा से विभूषित किया . प्रक्रति के साथ जीवन मरन के सम्बन्ध जोड़े . इसी लिए म्रत देह को जलाकर उसके सभी अंशों को वापस उन्हीं के पास भेजने का उपाय किया . ऋग्वेद के ऋषि ने पहले ही कहा था कि आग की उत्पति जल से हुई है . आज मूलभूत पांचो तत्व भयभीत हैं . भारत जो शुरू से ही प्रक्रति का पुजारी रहा है आज प्रक्रति के विपरीत आचरण कर उसे नष्ट करने पर तुला है . प्रक्रति को बचाए विना आखिर हम जीवन की कल्पना कैसे कर सकते हैं?
सभी लोग चाहते थे कि गाँव में एक मंदिर बने . मंदिर बनाने कि कला केवल राधे ही जानता था . राधे यह भी जानता था कि मंदिर बनाने के बाद गाँव वालों का व्यवहार उसके साथ बदलेगा . राधे का भाई पत्थर तराश कर मूर्ति बनाने कि कला जनता था . गाँव वालों के कहने पर राधे ने बनाया मंदिर और उसके भाई ने तराशी भगवान कि मूर्ति . शुभ महूर्त में मूर्ति में प्राण स्थापना की गयी . प्राण स्थापना के समय दोनों भाइओ को मंदिर में नहीं आने दिया गया .बेचारे दूर खड़े -खड़े सब देखते रहे . आज भी जब मंदिर के गुम्बद पर चढ़ना होता है तो चढ़ता बेचारा राधे ही है . लेकिन आम समय में उसे मंदिर में जाने की मनाही है . यह प्रश्न उन दोनों भाइयों ने आखिर पंडित जी से पूछ ही लिया कि यदि हम इतने अछूत ही हैं तो हमारे बनाए मंदिर में आप क्यों करते हो पूजा ? और हमारे दुआरा गढी गयी मूर्ति में कैसे विराजते हैं आप के भगवान ? पंडित जी के पास इन सीधे प्रश्नों का कोई उत्तर नही था .
विधाता ने संसार में अनेक वस्तुएं बनाई हैं , फूल भी उनमें से एक है . प्रेम , श्रद्धा, समर्पण ,उल्ल्हाश सभी स्थितियों में एक फूल ही है जो साथ निभाता है . किसी को प्यार से फूल दे कर हम अपने को धन्य समझनें लगते हैं तो शव पर फूल अर्पित कर अपनी श्रधांजलि देते हैं . दो युगल जब विवाह के बंधन में बंधते हैं तो फूल ही है जो दोनों की मनोकामनाओं का प्रतीक बन कर उनके गले की शोभा बन जाते हैं . एक भगत पत्थर के भगवान पर दो फूल अर्पित कर उन्हें रिझाने की कोशिश करता है .जीवन का कोई व्यापार नहीं जो फूलों के बिना पूरा होता हो . फूल जो हमें अपना सर्वस्व देता है आखिर उसके प्रति हमारा कोई कर्तव्य तो होगा ही . हिन्दी के कालजयी रचनाकार नरेश मेहता ने लिखा है कि प्रक्रति की अनुपम क्रति है पुष्प , प्रथ्वी की छाती फोड़ कर हवा और सूरज से संघर्ष करने वाले पौधे ने एक दिन अपनी विजयी मुस्कान को प्रकट करने के लिए अपने वरन्त पर फूल को जन्म दिया . वहां से टूट कर वह हमारी भावनाओं का शिकार हुआ . जब कोई पुष्प माल हमारे गले में डाले तो हम उसे वहींछोड़ कर न आ जाएँ , यह पुष्प का अपमान है . दादा माखन लाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा कविता हम सबने पढ़ी है ,फिरभी फूलों के प्रति हमारा आदर वैसा नही जैसा एक संवेदनशील आदमी से अपेक्षित है . एक बात और जो लोग शहर में रहतें हैं और सुबह धूमने के शौकीन होंगे उनका अनुभव होगा कि रात अंधेर में उठ कर दूसरों के घरों में खिले फूलों को चुरा कर भगवान को अर्पित कर उन्हें खुश करने का पाप करने वालों पर फूल की आत्मा रोती जरूर होगी . हमारे लिए अपना सब कुछ अर्पित करने वाले इन फूलों को हम क्या अर्पित करें ?
जन्म स्थान नियामतपुर जिला इटावा उत्तर प्रदेश ,
शिक्षा एम. ए. बीएड ,
नौकरी - वरिष्ट अध्यापक हिन्दी बिरला हायर से. स्कूल पिलानी राजस्थान ,
कर्मचारी राज्य बीमा निगम भारत सरकार श्रम मंत्रालय में कार्यरत ,
प्रकाशित पुस्तकें - १- अंतस के स्वर ,२- तुलसी का प्रजान्त्रतिक द्रष्टिकोण ,3- परम्पराओं का विज्ञानं ,४- सम्भ्रमों का संजाल ,५-प्रयोजन मूलक हिन्दी के विविध रूप (सहलेखक), ६- पत्रकारिता प्रशिक्षण (सहलेखक),
संपादन -पत्रिका वीणा (हिन्दी साहित्य की अब तक प्रकाशित सबसे पुरानी पत्रिका ),पत्रिका समसामयिकी समाचार - 1999 से निरंतर ,
पत्रिका 'मालव ज्योति' 1990 से निरंतर ,
आलोचनात्मक लेखन - डॉक्टर रामविलास शर्मा के लेखन व उनकी आलोचनात्मक पुस्तकों पर केंद्रित अब तक 100 आलेख प्रकाशित । वर्तमान में डॉक्टर शर्मा पर केंद्रित पुस्तक का लेखन।
विविध विषयों पर हिन्दी की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित।
आकाशवाणी, दूरदर्शन, ज्ञानवाणी पर निरंतर आलेख प्रसारित।
विविध विषयों पर अब तक अनेक व्याखान।
निवास - ''मानस निलयम '', M-2, वीणा नगर, इंदौर-452 010 (m.p.)
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