रविवार, 30 जनवरी 2011

लघु कथा संग्रह ''अँधेरे के खिलाफ'' का विमोचन

इंदौर  शहर  कहानीकारों की द्रष्टि से बहुत भरा पूरा है , नई कहानी की द्रष्टी से श्री प्रभु जोशी का नाम सबसे पहले आता है . श्री सूर्यकांत नागर , डॉ सतीस दुबे , डॉ विलास गुप्ते , श्री चेतन्य त्रिवेदी ,उन्नी ,डॉ योगेन्द्र नाथ शुक्ल और राजेन्द्र वामन काटदरे आदि कहानीकार हैं  पिछले दिनों  श्री राजेन्द्र  वामन काटदरे की लघु कथों के संग्रह ' अँधेरे के खिलाफ का विमोचन हुआ , असल में यह समय लघु कथाओं कि द्रष्टि से महत्वपूर्ण है . आज जब आदमी के पास समय का आभाव है . वह कम समय में साहित्य की जानकारी चाहता है ऐसे में उसकी मांग लघु कहानियां ही पूरी करसकती हैं . श्री राजेन्द्र वामन काटदरे की कहानियाँहामारे समय का दस्तावेज हैं . आज से दो दशक बाद यदि कोई हमारे समय के आदमी के जीवन के बारे में जानना चाहेगा तब ये कहानियाँ  उसकी बहुत मदद करेंगी . पुस्तक की भूमिका श्री सूर्यकांत नागर नें लिखी है , इस भूमिका में उन्होंने लघु कहानी लेखन की पूरी पड़ताल की है . समय के साथ संवाद करती इन कहानियों का स्वागत किया जाना चाहिए . श्री राजेन्द्र वामन काटदरे ने अपने सहज सुभाव की अनुरूप ही इन कहानियों का ताना बाना बुना है . सीधी सरल भाषा में लिखी गईं ये कहानियां पाठक को सोचने के लिए विवस  करती हैं . किसी लेखक का उद्देश्य भी यही होता है कि वह अपने पाठक से कहे कि जो कुछ तुम्हारे आस पास घट रहा है उसमें तुम्हारी भी भूमिका है  , एक लघु कथा लेखक के रूप में श्री राजेन्द्र वामां कट दरे सफल लेखक हैं .  विमोचन अवसर पर डॉ सरोज कुमार .और श्री श्री राम जोग भी उपस्थित थे , कवि श्री चन्द्र सेन विराट . लघु कथाकार श्री प्रताप सिंह सोडी ; गजल कार श्री चन्द्र भान भार्दुअज  , श्री हरे राम बाजपे . श्री प्रदीप नवीन समेत कई रचनाकार उपस्थित थे .    
बाई  ओर से श्री चन्द्र भान भारद्वाज , चन्द्र सेन विराट , अंसारी जी एवं प्रताप सिंह सोढ़ी
 पुस्तक ;;;;;; अँधेरे के खिलाफ 
 प्रकाशक ;;;;;;पड़ाव प्रकाशन , h  थ्री ,
                    उद्व मेहता परिसर
                     नेहरु नगर भोपाल  ४६२००८
 मूल्य ;;;;;;;; rs  १५०

बुधवार, 26 जनवरी 2011

साहित्य , समाज और परिवर्तन की प्रक्रिया ----- अज्ञेय

विगत दिनों अज्ञेय के निवंधों की पुस्तक  साहित्य , संस्कृति और परिवर्तन की प्रक्रिया पर चर्चा आयोजित की गयी . यह पुस्तक सुविखायात आलोचक डॉ कर्षणदत्त पालीवाल ने संपादित की है . मध्य प्रदेश साहित्य आकादमी दुआरा संचालित   पाठक   मंच इंदौर , के तत्वाधान में यह आयूजन सम्प्पन हुआ . हमारे  समाज को समझने  के वैचारिक धरातल पुस्तक में दिए गये हैं . अज्ञेय  के चिंतन को समझने का अवसर पुस्तक देती है . जो लोग अज्ञेय को कला वादी , अर्थ वादी घोषित करते रहे हैं उन्हीं यह पुस्तक जरूर पढनी चाहिए .  आलोचक , चिन्तक , लेखक  विचारक और कवि अज्ञेय के अनेक रूपों को देखने का अवसर पाठक को मिलता है . पुस्तक चचा में डॉ     ओऊम ठाकुर , डॉ पुरूसोतम दुवे , , चन्द्र सेन विराट , चैतन्य  त्रिवेदी , हरे राम वाजपेयी ,प्रदीप नवीन डॉ नियत स्प्रे  , चन्द्र किरण गुप्ता , मोहन रावल, डॉ शशि निगम , शुभाष निगम और  राकेश शर्मा ने भाग  लिया  . सभी ने एक मत से यह स्वीकार किया कि अज्ञेय  भारतीय मनीषा के अमर गायक कवि हैं , उन्हें पशिम का अगेंट कहनें वालों को अज्ञेय के साहित्य को पूर्वाग्रहों से  दूर हट कर विचार करना चाहए .

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

विनाश या विकास की ओर बढ़ते कदम

 भौतिक विकास प्रक्रति का विरोधी होता है . विकास की अंधी दौड़ ने प्रक्रति के सामने अस्तित्व का संकट खडा कर दिया है . आज के आदमी को विकास भी चाहिए और प्रक्रति भी . उसकी दोनों  चाहतें कैसे पूरी हों यह चिंतन का विषय है . चिंता यह भी है कि अगर प्रक्रति के लिए इसी तरह खतरे बड़ते गए तो प्रक्रति कुमार कहा जाने वाला यह मानव कैसे बच पायेगा ?मनुष्य का जन्म प्रक्रति की गोद मैं ही हुआ है इसी लिए वह आज भी शांति की तलाश में वनों ; पहाड़ों . नदियों और समुद्र के पास जाता रहता है . यह उसकी मजबूरी भी है ओर स्वाभाविक जरूरत भी . लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर विकास के नाम पर इसी तरह विनास का पहिया  घूमता  रहा तो आने वाली पीढियां किस नदी के तट पर बैठने जायेंगी ? कौन से पहाड़ उसे अपनें पास बुलाकर उसकी पीड़ा हारेंगे ? सभी नदियों का जीवन संकट में है , पहाड़ आदमी के बढ़ते लालच से भयभीत हैं . एक नदी केवल पानी का श्रोत भर ही नही होती वह सस्क्र्ती की संवाहिका भी होती है .विश्व की सभी संस्क्र्तियों  का जन्म नदियों के तटों पर ही हुआ है .आज ये नदिया भयभीत हैं . इन सब के अलावा जंगल जो हमारे अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा हैं , निरंतर कम होते जा रहे हैं . नदी पर्वत ,जंगल  पहाड़ ये निर्जीव इकायाँ नहीं है . ये जीवंत हैं और सच तो यह है कि यदि ये हैं तो हमारा असितित्व  है . ज़रा सोचिये कि अगर ये सब ना होते तो महावीर , गौतम बुद्ध. राम आदि सब को करुना का पाठ कौन पढाता ? इस चित्र में आप देख रहें कि एक पहाड़ को बहुत बे रहमी से नष्ट किया जा रहा है . यह चित्र गोवाहाटी और सिलोंग के बीच काटे जा रहे पहाड़ का है ,इसने सदियों तक अपने ऊपर जंगल उगाकर मनुष्य की सभी जरूरतों को पूरा किया है और आज आनाथ की तरह हो गया है . आदमी  ......पहाड़ , नदियाँ और जंगल नष्ट तो कर सकता है पर याद रहे आदमी पहाड़ पैदा नहीं कर सकता वह नदी भी नहीं वहा सकता और जंगल उगाने के लिए आदमी के पास जमीन भी नहीं है . यह सोचनें का समय है कि हम जा जा कहाँ    रहे   हैं  ........विकास की तरफ या विनास की ओर ?