शनिवार, 13 अगस्त 2011

खामोशी में झरता है वियोग

  1. खामोशी  में   झरता है वियोग  ''    वरिष्ठ कवि क्रष्णकान्त  निलोसे  का अभी  हाल में प्रकाशित कविता संग्रह है    आज कल लिखी जारही कविताओं  में   बिलकुल भिन्न तरह की भाव भूमि पर रची गयी इन कविताओं में कवि ने  सात्विक प्रेम की भिन्न-- भिन्न द्रष्ट कोणो से व्याख्या की है . वियोग शब्द योग का विलोम है जिसका अर्थ है अलग - अलग . गणित शाश्त्र के नियम के  अनुसार दो सामान संख्याओं में योग होता है. असमान स्थितियों में योग नहीं होताहै. जीव और परमात्मा  में अंश औरअंशी का सम्बन्ध माना गया है. इस लिए इन के मिलन को योग औरविछोह को वियोग की संज्ञा दी गयी है. इसी आधार पर भारतीय मनीषा में अद्वत जैसा अनूठा शब्द जन्मा है इन कविताओंमें यही अद्वत  अनेक रूपों में पाठक के सामने आता है. प्रेम की सत्ता  को कवि निरंतर स्वीकारते रहे हैं . वही स्वीकारोक्ति इन कविताओं में भिन्न व्यंजनाओं में मिलती है कवि प्रेम को परिपक्व अवस्था का भाव मानता है जिसमे  मांसल हरियाली, इन्द्रीय सुख के लिए कोई जगह नहींहै. ऊपर से बहुत सहज  देखाई पड़ने वाले इस विषय पर कविता लिखना सरल काम नहीं .प्रेम किये बिना , प्रेम के सरोवर में उतरे बिना  इनका अर्थ नहीं समझा जा सकता . भक्ति को परिभाषित करते हुए महाकवि तुलसी नेलिखा था ' जिन यही वारी ना मानस धोये '' अर्थात जिन्होंने इससरोवर से दो अंजलि जल नहीं पिया वे खुछ न समझ पायेंगे , ठीक वैसी हीस्थिती  इन कविताओं कीहै. प्रेम की डगर पर चले तो बहुतेरे हैं पर इस डगर के अनुभव विरले ही करपाए हैं. इन कविताओं की भाव भूमि ऐसी मालूम  पड़ती है जैसे गम्भीर बारिश  के बाद झाड़ियों से टपकता पानी वातावरण की नीरवता को भंग करता हैऔर  भीगा हुआ वातावरण एक नई श्रष्टि का श्रजन करता है. ऐसी सर्जनात्मक  सम्भावनाओं से भरी पूरी हैं इस संकलन की कविताएँ  कवि लिखता है   '' प्रेम / गर होता/ समुद्र  सुखका/ तो लहरों की शिराओं  में/  समाया हुआ दुःख / क्यों पटकता रहता अपना सर/ बार - बार.'' एक उदाहरण और देखए ---- क्योंकि अपनी वाणी से परे / शब्दातीत / महसूस किया है उसे / प्रज्ञा में स्थित / भाव की गति शीलता  में/ '' कवि निलोसेअपने  आध्यात्मिक मिलन की ओर इशारा करते हुए लिखते हैं----' देह हो कर / हम तुम / मिले ही कब / औरकब देह हो हुए अलग.'' ये पंक्तियाँ ऋषि मार्कंडेय की याद दिलाती हैं दुर्गा सप्तसती में वेलिखते हैं कि हे आदि शक्ति माँ  तुम परमानंद विग्रह हो . अर्थातसंसार  रचने के लिए विधाता ने स्त्री और पुरुष  के रूप में अपना विभाजन किया . कवि निलोसे का प्रेम उसी शास्वत सत्य की ओर इशारा कटा है. गंभीर और चितन प्रवण इन कविताओं से गुजर कर पाठक अपने आप को एक अतीन्द्रीय लोक में पाता है. आज  जब कविता में कविता के शिवा सब कुछ लिखा जा रहा है ऐसे में कवि निलोसे की कविताएँ भरोशा दिलाती हैं कि संभावनाएं अभी शेष हैं . कवि क्रष्णकान्त निलोशे को इन सार्थक कविताओं के लिए बधाई .

रविवार, 7 अगस्त 2011

रचनाकर जो पाठक मंच इंदौर की गोष्ठियों में उपस्थित हुए


उपन्यास पर चर्चा आयोजित

पाठक मंच इंदौर ने लिखिका डॉ मीनाक्षी स्वामी की पुस्तक भूभल पर चर्चा आयोजित की . यह उपन्यास नारी की सामाजिक स्थिति पर केन्द्रित है लेखिका ने बड़े साहस के साथ इन विषयों को उठाया है . इस पुस्तक गोष्ठी में डॉ पुरुषोतम दुवे , डॉ जबाहर चौधरी , डॉ ॐ ठाकुर , डॉ कला जोशी, डॉ छाया गोयल डॉ हेमलता दिखित , श्री मोहन रावल , नियति सप्रे ,किसलय पंचोली   डॉ मीनाक्षी स्वामी    , ब्रजेश क़ानून गो , नन्द किशोर सोनी , चन्द्र भान भार्दुआज , गोपाल माहेश्वरी , प्रताप सिंह सोढी, देवेश त्यागी  श्याम यादव , बसंत जौहारी, कु. लवीना निनामा , रंजना फतेपुरकर , नंदनी जोशी और राकेश शर्मा ने भाग लिया . चर्चा का निष्कर्ष यह निकला  की क़ानून बना लेने , शिक्षा का  प्रचार कर लेने अथवा नारी के समर्थन में नारे लगा लेने से कोइ परिवर्तन होने वाला नहीं है . पूरा पुरुष समाज नारी के साथ अन्याई  नहीं है औरअत्याचारी  भी नहीं है . लेकिन नारी की देह और उसकी अस्मिता पर हो रहे निरंतर अन्यायों के विरुद्ध आवाज उठाने की जरूरत है . इसे जन जागरण के दुआरा ही दूर किया जा सकता है . उपन्यास अनेक विमर्शों को जन्म देता है . पठाक को सोचने के लिए मजबूर करता है .
चर्चा में भाग लेते लेखक