एक बाण
संसार का दुःख दर्द
जब फांस की तरह
धंस जाता है कवि ह्रदय में ,
तब लिखी जाती है,
एक सार्थक कविता।
कवि अवचेतन में हैं,
अगणित कविताएँ,
, वे प्रवाहित होती हैं,
कवि की मानस सलिला में,
लेकिन जब कोई अर्जुन,
संधान करता बाण .,
बानगंगा की तरह प्रवाह आ जाता है बाहर।
इसे प्रवाह में एक -
एक शव्द कवि के रक्त और मांस मज्जा
का स्पर्श पाकर ही,
लेता है आकार,
कागज़ की छाती पर।
क्रोंच पक्षी को लगा था तीर,
तो मर गया था वह,
लेकिन बहेलिये का वह बाण,
तब से फंसा हुआ है कवि छाती में,
जिसे युगों-युगों से,
लिए हुए घूम रहा है वह,
यत्र, तत्र, सर्वत्र,
सोचो तो जरा,
अगर नही धंसता बाण,
वंचित रह जाता संसार कविता से।
जब तक यह बाण धंसा है,
कविताओं का प्रवाह रहेगा निरंतर,
जानता हूँ में भलिभांति,
की कम नही हैं बाण बहेलिये के तुणीर में।
पर कवि मानस में है अनंत कविताएँ।
इसी तरह अनंत काल तक
चलता रहेगा युद्ध
अबाध और अखंड
न कम होंगे बहेलिये और बाण
न कम होंगी कविताएँ और कवि।
(कहा जाता है की वाल्मीकि ने बहेलिये के द्वारा मरे गए क्रोंच पक्षी के क्रंदन को सुना था और तभी विश्व की पहली कविता जन्मी थी। अगर यह सच है तो विद्रूपताओं के बाण आज भी वाल्मीकि के वंशज कवि को आहात करते हैं। और कविताएँ जनम लेती हैं।)
हम सभी हैं बाहुबली
पेड़ की आड़ से ,
बाली को मारकर
राम ने।
बाहुबलिओं को मारने का,
संभ्रांत तरीका खोजा था।
तब से संभ्रांत लोग तलाशते हैं,
एक पेड़ राम की तरह
खड़े होकर पीछे जिसके
मारा जा सके बाहुबली।
समाज में इस तरह खड़े हम सभी
हर तीसरे की लिए तीसरा हैं बाहुबली
हम सभी के पास है
अक्षय तूनीर विष बुझे बाण
इनके संधान की अचूक कला
जानते है हम सभी।
बाहुबलिओं के दंभ से सराबोर हैं
हमारे मानस।
सभी की पीठ पर दिखाई पड़ते हैं
पीछे से संधान किए गए बाण
और रक्तरंजित ह्रदय,
इस युद्ध में मरते है बाली
और कटते हैं पेड़
टूटता नही हैं क्रम
पूर्ति होती है सुनिश्चित
युद्ध का अभिनय हो सकता है भिन्न-भिन्न
पर सचमुच में है हम सभी बाहुबली।
सबके अन्दर का युद्ध
आप का दाया या बांया हाँथ,
आप के विरुद्ध कर दे बगावत,
और काटने लगे आपका सर,
तो कौन मानेगा इसे सच।
स्वपन में नही जागते हुए,
जीवन में घटता है यही सब,
और यही करते हैं,
आप के अन्तरंग लोग।
इस अनकही पीड़ा
से उपजे आर्तनाद की कराह को,
बाहर न निकाल सकने के लिए
अभिशप्त हैं आप,
फिर किस तरह बताएँगे
संसार को अपने अन्दर का हाल।
मन के महाभारत को
संजय की तरह देखते है आप
ध्रितराष्ट्र सी अंधी दुनिया,
मना करती है सुनने के लिए
आपकी मनोव्यथा
तब और नही लगाया जा सकता है
आपकी पीड़ा का अनुमान
जानता है केवल वह
जिसके पास है
ह्रदय में झाँकने की दृष्टि
और दूसरों की पीड़ा में
गल जाने वाला ह्रदय
पर असंभव है मनुष्यों के इस जंगल में
शिशु के समान ह्रदय को खोज पाना।
आवरण
देखकर आवरण
पालोमत कोई विचार
छिपाने केलिए विद्रूप्तायं
ओढे जाते है आवरण
दिख सके सौम्य
इसलिए आदमी ओढ़ता है आवरण
आवरण ही तो है जिसे ओढ़ कर
वह कहलाता है सभ्य
जिसे नहीं होती है अक्ल
आवरण ओढ़ने की
सभ्य होते हुए भी
वह खा जाता है मात
आवरण वस्तुओं के ही नहीं
सव्दों के भी होते हैं
शब्दों के आवरण
होते हैं अधिक घातक
शब्द कह लाता है ब्रम्ह
शब्दों में लिपटा आवरण
बन जाता है ब्रम्हास्त्र
महाकवि की मूर्ति पर बैठा परिंदा
भाग्यशाली हैं वे लोग
जिनके घर आते हैं परिंदे
विचारों की तरह
स्वतंत्र विचरते हैं परिंदे
विचार भले ही घुस जायें
किसी के भी दिमाग में
परिंदे कभी नहीं बैतिते
जीवित मनुष्य के सर पर
चाहे वह खड़ा ही रहे
अविचल रात और दिन
परिंदे जानते हैं भली भांति
जिन्दा मनुष्य के सर पर बैठना
होता है खतरनाक
वे अक्सर रहते हैं वहां
जहाँ बहुतकम जाता है मनुष्य
महा कवि की मूरिती पर बैठा परिंदा
लगता है अभी
उपजा है नया विचार
जो उड़ान भरने से पूर्व
करना चाहता है दिशा सुनिश्चित
जानते हैं महा कवि
uda दिए गए हैं उनके विचार
परिंदों की मानिंद
अब बहुत कम बचे हैं मनुष्यों के सर
जहाँ बैठे सकें महा कवि के विचार