आतंकवाद आज के मानवीय समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। हर सभ्य आदमी इसे सभ्यता के माथे पर कलंक मानता है। आज संसार का हर देश इससे पीड़ित है। मनुष्यता के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ, जब बिना किसी कारण के निर्दोष मानुष मारा गया हो। इसके कारण जो भी हों पर इससे लड़ने के लिए पूरा सभ्य समाज चिंतित है। इंदौर की श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्यसमित द्वारा संचालित समसामयिक अद्ययन केन्द्र ने इस विषय एक आयोजन किया। जिसका विषय था ''आतंकवाद के विरुद्ध, हमारे सामाजिक सरोकार।" इस पर बोलते हुए सेवानिवृत्त आईजी.सीमा सुरक्षा बल श्री मोहम्मद जियाउल्लाह ने बताया की आतंकवाद से लड़ने के लिए जनता को जागरूक करना जरुरी है। बिना जनसहयोग के इससे नही लड़ा जा सकता। हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा की हमारी हर प्रकार की सुरक्षा के लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी। यह सही है की जनता की जानमाल की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है पर एक जागरूक नागरिक होने के नाते राष्ट्र के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है। आतंकवाद के कई कारण हैं, जिनमें धर्म के प्रति कट्टरता , अशिक्षा , गरीबी जैसे कारण प्रमुख हैं। भारत में आतंरिक कारणों और बाहरी कारणों से आतंकवाद फैला हुआ है। पाकिस्तान से आयातित आतंकवाद स्टेट के द्वारा फैलाये जाने वाले आतंकवाद की श्रेणी में आता है। एक नागरिक की हैसियत से हम लोग चौकन्ने रहकर आंतकवादी गतिविधियों पर रोक लगा सकते हैं। आतंकवाद धीरे-धीरे पैर पसारता हैं। अपनी बस्ती में संदिग्ध दिखने वाले व्यक्ति की गतिविधियों पर ध्यान रखे और निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में काम करे। आंतकवादियों का कोई धर्म नही होता, वे खून-खराबे में विश्वास करते हैं। भारत में रहने वाले हर व्यक्ति का पहला धरम राष्ट्रधर्म है। इसके बाद उसका अपनाया हुआ धरम आता है। राष्ट्र ही एक ऐसे जगह है जहा हमें जीवन जीने की सहजता होती है। लेखकों का यह दायित्व है की वे राष्ट्र भावना का जागरण करें और लोगों को संकीर्णता से ऊपर उठाये।आतंकवाद के काम में लगे लोग कम उम्र के गुमराह कोग होते हैं । मिडिया को बहुत अधिक तरजीह नही देना चाहिए क्योंकि इनमें अक्सर इसे लोग होते हैं । जोचाहते हैं की इस्सी बहने से संसार के लोग इन्हें पहचाननें लगेंगे । यदिमीडिया में ये हीरो की तरह इन्हें जगह मिलेगी तो ये लोग अपने लक्ष्य में कामयाब हो जाते हैं ।
प्रसिद्ध समाजसेवी और वकील अनिल त्रिवेदी ने कहा की आजादी के ६० वर्षों में सामाजिक स्तर पर भाईचारा बढ़ाने की जगह आपसी वैमनस्य बढ़ा है। और बात यहाँ तक आ गयी है की हमारे पड़ोसी मुल्क के गुमराह लोग आत्मघाती बनकर आतंक फैला रहे हैं। उन्होंने माना की मनुष्य के आतंरिक विचारों को परिवर्तित कर उसे निर्माण के रास्ते पर लाया जा सकता है। देश में नफरत फैलाने वाले भ्रष्टाचार के ठेकेदार भी आतंकवादी ही माने जाने चाहिए। भारत का आतंकवाद एक गहरे छदम युद्ध का हिस्सा हैं। आतंकवाद से लड़ना केवल सेना का काम नही हैं, यह काम सामजिक स्तर पर करना होगा तथा मनुष्य में सत्य, अहिंसा के प्रति लगाव पैदा करने की जरुरत है। ऊपर से भले ही ठीक न लगे पर इस समस्या का निदान गांधीजी के द्वारा दिखाए गए मार्ग से ही सम्भव हैं। न तो यह देश कारपोरेट की तरह है और न ही कोई दूसरा देश कारपोरेट की तरह चलाया जा सकता है। देश को चलाने के लिए व्यापक विचारों वाले लोगो की जरूरत है, जो लोगों को सामजिक, राजनितिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तोर पर समझे और उन्हें समझा सके। हर घटना से समाज प्रभावित होता है । लोगों में घबराहट पैदा होती है लेकिन बाद में हम फ़िर विसुध हो जा ते हैं । जबकि जरुरत इस बात की है की हम निरंतर विचार करें की दुबारा इसी घटना न घटने पाए । इस अवसर पर इंदौर शहर के अनेक लेखक तथा छात्र उपस्थित थे।
शनिवार, 6 दिसंबर 2008
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2 टिप्पणियां:
राकेश जी,
समसामयिक घटना किसी भी मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. मैं आपके इस विचारों से सहमत हूँ कि जिन्दगी की लडाई में हम मौत के कशीदे ना पढें जाये और संचार तंत्र अपनी समाज में रचनात्मक और संवेदन भूमिका का जिम्मेदारी पूर्ण निर्वाह करे.
yah bhi ek umda rachana hai.
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