समालोचना शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की लुच धातु से है, जिसका अर्थ है देखना। सम्यक द्रष्टि से देखने की विधि हुई आलोचना। यदि बिना भेदभाव और पूर्वाग्रह के गुण-दोषों को देखना ही समालोचना है, तो इस प्रकार की आलोचना किसी रचना के बाद उस पर किया जाने वाला नीर-क्षीर विवेक का काम है। इस परिभाषा में आलोचकीय कर्म सामानांतर सृजन न होकर प्रतिसृजन हुआ। लेकिन सही मायने में आलोचना एक लेखकीय कर्म है तथा इसकी एक पुष्ट विधा हिन्दी साहित्य में मोजूद है। हिन्दी आलोचना की जो नींव आचार्य शुक्ल ने साहित्याकीय गुणों के आधार पर निश्चित की थी, यह निश्चित रूप से एक वैज्ञानिक विश्लेषण पर केंद्रित है। डॉक्टर रामविलास शर्मा ने हिन्दी साहित्य में आलोचना के पैमाने बदले हैं। उनका आलोचकीय कर्म एक बंधी हुई लीक से हटकर है। उनके आलोचना साहित्य को पढ़ते हुए लगता है कि मानो उनके लिखित साहित्य पर कविता, कहानी, नाटक और उपन्यास लिखे जाने की जरूरत है। उनकी पुस्तकें शोध कार्य के लिए प्ररित करती है। क्योकि इन पुस्तकों के केन्द्र में शोध कार्य के लिए प्रेरित करती हैं। क्योकि इन पुस्तकों के केन्द्र में शोध की वृत्ति मौजूद होती है। एक साथ अनेक विषयों पर लेखनी चलाई है, वे विषय पहली बार साहित्य के विषय बनते हुए दिखाई पढ़ते हैं। इतिहास, दर्शन, भाषा-विमर्श जैसे विषय उनकी आलोचना के केन्द्र में हैं। उनका यह काम हिन्दी साहित्य की विकासमान प्रकृति को प्रकट करता है। एक अच्छा आलोचक समग्रता में सोचता हैं तथा वर्तमान समय को संपूर्ण समस्याओं से जूझकर उनके समाधान प्रस्तुत करते हुए भविष्य का खाका भी प्रस्तुत करता हैं। इस काम में डॉक्टर रामविलास शर्मा हिन्दी के पहले आलोचक हैं, जिन्होंने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नव-जागरण पर जब पुस्तकें लिखी, तब उनके विश्लेषण का विषय आचार्य शुक्ल का लिखा हुआ साहित्य ही नहीं होता, बल्कि वे नाप रहे थे की शुक्लजी ने अपने समय के सामाजिक सरोकारों के साथ किस तरह से न्याय किया है और यही बात जब वे निराला की साहित्य साधना पुस्तक लिख रहे थे, तब भी दिखाई पढ़ती है। निराला की साहित्यिक साधना जो किसी कवि पर लिखी गयी विश्व की उत्कृष्ट कृति मानी जाती है। यह कृति उस कालखंड की समूचे रचना परिद्रश्य को प्रकट करती है और साथ ही लेखकों को यह प्रेरणा देती है की अपने समय के साथ किस तरह से लेखकीय न्याय होना चाहिए। 'भारतेंदु युग' पुस्तक में भी केवल साहित्य आलोचना नहीं है, बल्कि उस समय का मूल्यांकन भी मौजूद है। डॉक्टर रामविलास शर्मा अपनी आलोचना यात्रा में लगभग १०० ग्रन्थ लिखते हैं। उनके अनेक ग्रन्थ मार्कस्वाद की द्रष्टि से संपन्न हैं, लेकिन इन ग्रंथों की तह में समय और उसकी जरूरतों तथा उन शक्तियों का विश्लेषण मिलता है, जिनसे मानव जीवन प्रभावित हुआ था, तमाम विश्लेषणों के बाद वे एक प्रगतिशील समाज की रचना ke लिए जूझते हुए दिखाई पढ़ते है। डॉक्टर रामविलास शर्मा हिन्दी आलोचक भिन्न हैं, क्योंकि वे साहित्येतर विषयों पर काम करते हैं। उनकी पुस्तकें "गाँधी, आंबेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ'' तथा भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश एवं '' पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद'' ये इसी श्रेणी की पुस्तकें हैं। डॉक्टर शर्मा के व्यक्तित्व पर निराला का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। निराला की सृजनशीलता के लिए उन्होंने लिखा था -"जैसे १८५७ का कोई वीर सेनानी युद्ध छोड़कर साहित्य के मैदान में चला आया हो।''इसी बात को आगे बदतेहुएइ नामवरसिंह ने कहा यह है .जयादा सही यह है की वह वीर सेनानी doctor रामविलास स्वम हैं. '' सन १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम, जिसे अंग्रेजों ने सैनिक विद्रोह तथा कुछ भारतीय इतिहासकारों ने ग़दर कहा था। यह आन्दोलन डॉक्टर रामविलास शर्मा के लेखन का प्रस्थान बिन्दु है। उन्होंने इसे भारतीय स्वाभिमान का उभार माना है। भारत में व्यापत जाती प्रथा और अंगरेजी राज्य की स्थापना के बारे में उनका स्पष्ट मत रहा है की भारत में जातीय बंटवारा अंग्रेजों के आने से पहले था और बाद में भी रहा, लेकिन अंग्रेजों के आने से पहले इतनी granaspad कट्टरता नही थी। लोगों के बीच इस घरना की खाई को चोंडा करने का काम अंग्रेजों का रहा हैं। इसी sandrabh में उनकी यह manyata हैं की हिंदू-muslim dange इतनी badi matra में नही होते थे। वे likhte हैं की हिंदुस्तान की आजादी के लिए हिंदुस्तान की लादे, लेकिन अंग्रेजों ने kootniti का sahaara लेकर देश को aajad होते देख उसका धार्मिक आधार पर बंटवारा कर दिया।
अंग्रेजी का महत्व कम हो और उसकी जगह हिन्दी और भारतीय भाषाओँ का प्रभाव बड़े, यह डॉक्टर रामविलास शर्मा की सबसे बड़ी चिंता है। अमेरिका और इंग्लैंड की भाषा सम्बन्धी नीति का हवाला देते हुए वे लिखते हैं -''ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, दो ऐसे देश हैं, जो अन्य देशों की पूँजी का निर्यात करते हैं, जो प्रछन्न और प्रकट रूप में से उपनिवेशवाद का पोषण करते हैं, जो अपने प्रभाव को साम-दाम-dand - भेद की बहुरंगी नीति से सुरक्षित करके और व्यापक बनने में लगे हुए हैं। राजनीति से लेकर शिक्षा और संस्कृति तक जिस देश में जैसे बन पड़े हैं, यह घुसने, पैठने, अपनी जड़ें ज़माने की कोशिश करते हैं। इनकी भाषा सम्बन्धी एक स्पष्ट नीति हैं, पहले के समान यहाँ की भाषाओँ को दबाकर रखना, उनके ऊपर श्रीश स्थान पर अंगरेजी को जमकर रखना। इससे यह लाभ होता है की आपके मर्मस्थल पर प्रहार करके आपको कमजोर बनाकर, वे आपको ओनी स्वार्थ निति की ओर आसानी से खिंच सकते हैं। मर्मस्थल हैं, जातीय भाषा के प्रेम का स्थल, जातीय संस्कृति के प्रेम का स्थल, राष्ट्रीय आतम गौरव का स्थल। आदमी को उस स्थल पर मारिये, उसे भीतर से निर्वीर्य कर दीजिये, फिर बलि पशु को चाहे जिस खूंटे से बांधकर उसका वध कर दीजिये।"
डॉक्टर शर्मा का सपना है की भारत का समाज एक समता मूलक समाज बने, जो विदेशी मूल्यों का अनुकरण न करते हुए प्रगतिशील बने, उन्हें भारतीय संस्कृति की गरिमा का ख्याल हमेशा रहता है, इसीलिए वे ऋग्वेद, महाभारत, रामायण, पुराण आदि से सन्दर्भ प्राप्त करते हैं. जितनी व्यापक द्रष्टि के साथ उनका लेखन है, उतनी ही व्यापक द्रष्टि के साथ उसका मूल्यांकन किया जिए, तभी न्याय सांगत मूल्यांकन होगा.
रविवार, 23 नवंबर 2008
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6 टिप्पणियां:
भाई, बधाई, लगो रहो मुन्ना भाई। एक दिन हमारा भी होगा।
राकेश भाई,
आपने वर्षों पहले मुझसे इस ब्लाग पर आने का न्योता दिया था, लेकिन मैं इस माध्यम से परिचित नहीं था और इंटरनेट पर खुद को कुछ असहज पाता था। आज मैंने आपका लेख पढ़ा। आपने ईमानदारी से डॉ शर्मा का मूल्यांकन किया है। इस विषय में मेरे पास भी कहने को बहुत कुछ है, मगर मुझे अपना ब्लाग बनाना नहीं आता। खैर, जो डॉ शर्मा के बारे में पहले से जानते हैं वे तो बहुत ज्यादा जानते हैं, मगर बहुतेरे अनजान लोगों से डॉ शर्मा का संक्षिप्त परिचय कराने के लिए आप बधाई के हकदार हैं।
सुधीर साहु, रॉंची
राकेश भाई,
आपने वर्षों पहले मुझे इस ब्लाग पर आने का न्योता दिया था, लेकिन मैं इस माध्यम से परिचित नहीं था और इंटरनेट पर खुद को कुछ असहज पाता था। आज मैंने आपका लेख पढ़ा। आपने ईमानदारी से डॉ शर्मा का मूल्यांकन किया है। इस विषय में मेरे पास भी कहने को बहुत कुछ है, मगर मुझे अपना ब्लाग बनाना नहीं आता। खैर, जो डॉ शर्मा के बारे में पहले से जानते हैं वे तो बहुत ज्यादा जानते हैं, मगर बहुतेरे अनजान लोगों से डॉ शर्मा का संक्षिप्त परिचय कराने के लिए आप बधाई के हकदार हैं।
सुधीर साहु, रॉंची
राकेश भाई,
आपने वर्षों पहले मुझे इस ब्लाग पर आने का न्योता दिया था, लेकिन मैं इस माध्यम से परिचित नहीं था और इंटरनेट पर खुद को कुछ असहज पाता था। आज मैंने आपका लेख पढ़ा। आपने ईमानदारी से डॉ शर्मा का मूल्यांकन किया है। इस विषय में मेरे पास भी कहने को बहुत कुछ है, मगर मुझे अपना ब्लाग बनाना नहीं आता। खैर, जो डॉ शर्मा के बारे में पहले से जानते हैं वे तो बहुत ज्यादा जानते हैं, मगर बहुतेरे अनजान लोगों से डॉ शर्मा का संक्षिप्त परिचय कराने के लिए आप बधाई के हकदार हैं।
सुधीर साहु, रॉंची
प्रभावशाली मूल्यांकन...
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