मंगलवार, 15 जून 2010

ममता का कोई विकल्प नहीं है

संभ्रांत उन्हें कहते हैं जिनके वारे में भ्रान्ति हमेशा बनी रहे . संभ्रांत अक्सर ऐसे आवरण ओढ़ते हैं जिनके पीछे छिपा उनका असली रूप ज़माने के सामने नहीं आ पाता. सभ्रान्तों की बस्ती में सबसे अधिक सुखी होते हैं कुत्ते और दुखी भी होते हैं कुत्ते . अगर पाले गये तो सुखी वरना दुखी ही दुखी . ऐसी ही संभ्रांतों   की एक बस्ती में कुत्तिया ने जन्म दिया पांच पिल्लों को . कुछ दिन उन्हें  पाला पोसा  और फिर एक दिन किसी संभ्रांत की कार से कुचल दी गयी . अक्सर कुत्ते कुचल कर ही मरते हैं शहर  में,  गावों में ये संभावनाएं नही मिलती क्योंकि शायद वहां सम्भ्रान्त लोग कम होते होंगे . बरहाल कुत्तिया के मरने के बाद अनाथ हुए पिल्लों की देख =रेख कौन करता? संभ्रांतों की उस वस्ती में . सो मर गये वेचारे  जन्म लेते ही . जो काम अकेले एक कुत्तिया करती थी उसे पूरी संभ्रांत बस्ती  मिलकर भी न कर सकी . ममता का विकल्प कहां है ? [एक  लघु  कथा ]  ---  राकेश  शर्मा  

6 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

सार्थक पोस्ट, साधुवाद

nilesh mathur ने कहा…

sach kaha aapne.

Dev K Jha ने कहा…

मां तो मां है... उसको बदले से क्या...

Jawahar choudhary ने कहा…

सभ्रांत समूह का सही
आकलन किया गया है लधुकथा में ।
प्रभावी रचना है ।
पसंद की जाएगी

प्रदीप कांत ने कहा…

सभ्रांत का सही आकलन

aarkay ने कहा…

एक त्रासद परिस्थिति ! तथाकथित संभ्रांत किन्तु संवेदना शुन्य मानव जाति के क्या कहने .