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विचार रखते हुए आलोचक डॉ क्रष्णदत्त पालीवाल |
भारतीय समाज के निर्माण में साहित्य की सबसे बड़ी भूमिका है , हमारा समाज आज साहित्य से दूर भागता हुआ भले ही दिखाई पड़े परन्तु वह साहित्य के बिना अपना काम नहीं चला सकता . आज भी उसके सभी संस्कार साहित्य से ही पूरे होते हैं .स्वतंत्रता आन्दोलन के समय राष्ट्रीय भावना जागृत करने में साहित्य की सबसे बड़ा योगदान है . साहित्य केवल भाषा और शब्दों का खेल नहीं है . साहित्य की परिध में किसी भी राष्ट्र के पेड़ , पहाड , नदियाँ , जंगल ,पशु , चिड़िया , जड़ जंगम , चेतन वनस्पतियाँ , खान पान , वेश भूषा आदि सभी आते हैं . इन सबसे मिलकर जो चीज बनती है वह साहित्य की नजर में वह सब राष्ट्रीय धरोहर है . एक युग चेतना सम्पन्न लेखक ,कवि , आलोचक . मानवीय समाज के साथ साथ इन सबकी चिंता भी करता है . हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय स्वर विषय पर डॉ क्रष्णदत्त पालीवाल ने इंदौर में एक अविस्मरनीय भाषण दिया वे धर्मपाल शोध पीठ भोपाल दुआरा आयोजित एक प्रसंग पर इंदौर आये थे . हरिश चन्द्र और उनके बाद के सभी युगों में हिन्दी के अनेक रचना कारों ने राष्ट्रीय चेतना को पुष्पित और पल्लवित करने वाला साहित्य रचा है . आज के साहित्यकार का यह कर्तव्य है की वह एस परम्परा का निर्वाह करता रहे . साहित्य के सामाजिक सरोंकारों पर डॉ पालीवाल ने अनेक प्रसंग श्रोताओं के सामने रखे .
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