यदि कलाकार के पास द्रष्टि और साहित्यकार के पास कौशल हो तो साधन हीनता भी मार्ग की बाधा नहीं बनती . अभियास से दक्षता आती है . कल्पना के साथ कार्यान्वयन का समन्वय हो तो सर्जन में जान आ जाती है . शुभाष बोंडे की कलात्मक सोच का परिणाम आप देख रहे हैं . ऊपर दर्शाई गयी आक्रतियाँ श्री बोंडे ने झाड़ू के कूदा -करकट से बनायी हैं . इस कला को श्री शुभाष ने ब्रूम आर्ट नाम दिया है . आचार्य हजारी प्रसाद दूवेदी कहते थे की में रेट [बालू ] से भी तेल निकाल सकता हूँ बशर्ते बालू मेरे हाँथ लग जाए . साहित्य की
दुनिया में अनेक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने शब्दों का घातातोप रचे बिना , सरल और सहज शब्दों में काल जई रचनाएं की हैं . महाकवि तुलसीदास इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं . सच्चे कलाकार की यही पहचान होती है . इन कला क्रतियों को आप भी देखें और इनका आनन्द लें त्तथा कलाकार की भावनाओं को समझने का प्रयास हो तो बहतर होगा , प्रस्तुती .---राकेश शर्मा
बुधवार, 2 जून 2010
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5 टिप्पणियां:
बहुत रोचक चित्र है।
कमाल कि कलाकृतियाँ है!
wow
bahut khub
achhe chitro ko banaya he
badhai us kala kar ko jiske hatho ye ubhara gaya
Bahut bahut shukriya. aap sabne meri is choti si koshish ko saraha, iske liya mein aap sabka tahedil se shukraguzar hoo.................. Subhash Bonde, Broom Artist
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