शनिवार, 3 जुलाई 2010

फूल तुम्हें प्रणाम



विधाता ने संसार में अनेक वस्तुएं बनाई हैं , फूल भी उनमें से एक है . प्रेम , श्रद्धा, समर्पण ,उल्ल्हाश सभी स्थितियों में एक फूल ही है जो साथ निभाता है . किसी को प्यार से फूल दे कर हम अपने को धन्य समझनें लगते हैं तो  शव पर फूल अर्पित कर  अपनी श्रधांजलि
 देते हैं . दो युगल जब विवाह के बंधन में बंधते हैं तो फूल ही है जो दोनों की मनोकामनाओं का प्रतीक बन कर उनके गले की शोभा  बन जाते हैं .  एक भगत पत्थर के भगवान पर दो फूल अर्पित कर उन्हें रिझाने की कोशिश करता है .जीवन  का कोई व्यापार नहीं जो फूलों के  बिना  पूरा होता हो .  फूल जो हमें अपना सर्वस्व देता है आखिर उसके प्रति हमारा कोई कर्तव्य तो होगा ही . हिन्दी के कालजयी रचनाकार नरेश मेहता ने लिखा है कि  प्रक्रति की अनुपम   क्रति है पुष्प , प्रथ्वी  की छाती फोड़ कर हवा और सूरज से संघर्ष करने वाले पौधे ने एक दिन अपनी विजयी मुस्कान को प्रकट करने के लिए अपने वरन्त पर फूल को जन्म दिया . वहां से टूट कर वह हमारी भावनाओं का शिकार हुआ . जब कोई पुष्प माल हमारे गले में डाले तो हम उसे वहींछोड़  कर न आ जाएँ , यह पुष्प का अपमान है . दादा माखन लाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा कविता हम सबने पढ़ी  है ,फिरभी फूलों के प्रति हमारा आदर वैसा नही  जैसा एक संवेदनशील आदमी से अपेक्षित है . एक बात और जो लोग शहर में रहतें हैं और सुबह धूमने  के शौकीन होंगे उनका अनुभव होगा कि रात अंधेर में उठ कर दूसरों के घरों में खिले फूलों को चुरा कर भगवान को अर्पित कर उन्हें खुश करने का पाप करने वालों पर फूल की आत्मा रोती जरूर होगी . हमारे लिए अपना सब कुछ  अर्पित करने वाले इन फूलों को हम क्या अर्पित करें ?    

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