मंगलवार, 20 जुलाई 2010

प्रक्रति को नष्टकर आखिर मनुष्य कहाँ जाएगा



मनुष्य को प्रकृति कुमार कहा गया है . प्रकृति की गोद में ही उसनें आखें खोली थी . प्रकृति की बाहं पकड़ कर चलना सीखा .प्रक्रति के साथ बोलना सीखा .भाषा का जन्म भी प्रक्रति की गोद में ही हुआ है . ऐसा क्या है जो प्रक्रति ने मनुष्य को नहीं  दिया है. प्रकृति का शिशु कहलाने वाले इस मनुष्य ने अपने स्वार्थों के लिए इसी का गला गोट्ना शुरू कर दिया . आज सबसे अधिक संकट में यदि कोई है तो वह है , प्रक्रति . वायु संकट में है , जल काँप रहा है , निरंतर कम होते जा रहे जल के कारण आदमी के  अस्तित्व को संकट खडा हो गया है . ध्वनि प्रदूषण के कारण आकाश अशांत है . जमीन की पीड़ा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता . निरंतर खनन के कारन  प्रथ्वी भीषण चीत्कार कर रही है . हमारे  पुरखों  ने  प्रथ्वी को माँ कहा और आकाश को पिता की संज्ञा से विभूषित किया . प्रक्रति के साथ जीवन  मरन के सम्बन्ध  जोड़े . इसी लिए म्रत देह को जलाकर उसके सभी अंशों को वापस उन्हीं के पास भेजने का उपाय किया . ऋग्वेद के ऋषि ने  पहले ही कहा  था  कि आग की उत्पति जल से हुई है . आज मूलभूत पांचो तत्व भयभीत हैं . भारत जो शुरू से ही प्रक्रति का पुजारी रहा है आज प्रक्रति के विपरीत आचरण कर उसे नष्ट करने पर तुला है . प्रक्रति को बचाए  विना आखिर हम जीवन की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

भारत जो शुरू से ही प्रक्रति का पुजारी रहा है आज प्रक्रति के विपरीत आचरण कर उसे नष्ट करने पर तुला है . प्रक्रति को बचाए विना आखिर हम जीवन की कल्पना कैसे कर सकते हैं??