सोमवार, 28 जून 2010

समुद्र और स्त्री -- भाग 2

निर्मम समाज में 
 अहंकार की बलबेदी पर 
कुरीतियों के कुठार से 
 रोज - रोज काटे  जाते हैं कंठ 
 और   चाढाई जाती है बलि 
असहाय स्त्री की 
 स्त्री और  नदी 
 समाज और समुद्र 
 में भेद नहीं है कुछ 
विचारों  ज़रा  
 अगर समुद्र से न मिलने जाये नदी
 और समाज में ममता हीन हो जाये स्त्री
 रक्षित  न रह सकेगा समुद्र
और हरीतिमा रहित
 कंकाल वट वर्क्ष सा
हो जाएगा  संसार
[ राकेश  शर्मा ]
                                       

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना!

nilesh mathur ने कहा…

aapke template me koi problem hai follow nahi kar paa rahe,dekh len