रविवार, 15 अगस्त 2010
आम आदमी का देश प्रेम
आज स्वतंत्रता दिवस क६३वी वर्ष गांठ का अवसर है . कर्मचारी राज्य बीमा निगम नंदा नगर इंदौर ( मध्य प्रदेश ) में एक आयोजन है इसमें शामिल होने का मुझे भी सौभाग्य मिला . और सब कुछ तो ठीक वैसा ही था जैसा सब जगह होता है . राष्ट्र प्रेम के गीत गाये जा रहे थे . अभी कार्यक्रम चल ही रहा था की अस्पताल की इंचार्ज डॉ चित्रा मेहता के पास सन्देश आता है कि कार्यक्रम के बाद वे वार्ड न. ७ में आयें. ऐसी मरीजों की इच्छा है . एक डॉ को मरीज का बुलाना स्वाभाविक बात है , पर आज के बुलावे में रिश्ता डॉ और मरीज तक सीमित न था बल्कि सम्बन्ध देश प्रेम से था . ख़ैर डॉ चित्रा मेहता अपने साथी उप चिकत्सा अधीकक्षक डॉ नरेंद्र कुमार, डॉ उत्तमचन्द्र जैन , डॉ मनोज विडवान , डॉ पंकज जैन , डॉ . सारदा , श्री के . सी झा . वित्त अधिकारी और अन्य लोगों की पूरी टीम के साथ वार्ड न . ७ में प्रवेश करती हैं पर आज वार्ड रोज जैसा न था .मरीजों की कराहों की जगह भारत माँ की जयकार थी . वार्ड में भर्ती मजदूर गंभीर अस्थि रोग से जूझ रहे हैं . पर आज उनके चहरे देश प्रेम से चमक रहे थे मानो कह रहे हों की देश पर प्राण न्योछावर करने वालों से मेरी पीड़ा बहुत कम है. वे बाहर निकल कर स्वतंत्रता दिवस न मना सकते थे .सो उनके देश प्रेम ने उन्हें वहीं ऐसा कुछ करने के लिए कहा . पूरा वार्ड ऐसे सजाया गया मानों जन्म दिन हो . एक छोटी सी टेविल पर फूलों से सजा कागज से बना तिरंगा और हाँ एक फ़ैली हुई कटोरी में दीप जलाने का प्रबंध भी . यह सब प्रबंध किया था मोहम्मद अब्दुल रूफ ने, इनका भाई इकवाल कूल्हे की टूटी हड्डी के कारण अस्पताल में भर्ती है . भाई ,अब्दुल रूफ ने पूरे उत्साह से प्रवंध किया . राष्ट्र गान के बाद मुहम्मद रूफ ने अपने हाथो से सभी को मिठाई बांटी .मुहम्मद रूफ खुद मिठाई न ले रहे थे क्योंकि यह रमजान का महीना है . जितनी देर वार्ड में यह वातावरण था. किसी भी मरीज कि चहरे पर कोई शिकायत का भाव न था . सब भारत माँ की जयकार में डूबे रहे .यह देख विश्वास गहरा हुआ कि देश पर प्राण अर्पित करने का ज़ज्बा कभी कम न होगा . कम से कम उस वर्ग में जिसके बल बूते पर हम बिना संदेह का भरोसा कर सकते हैं . कई बड़े -बड़ों से बहुत बड़ा है इन मजदूरों का देश प्रेम.. कम से कम उन से जो देश की सेवा करने के बहाने भ्रष्ट आचरण में डूबे हैं . [ आप सब को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई ]
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर। ऐसे प्रसंग जीवन में खोये विश्वास को पुनः लौटा देते हैं। इतना सुन्दर प्रकरण बांटने के लिए आभार।
mai is sukhad gatna se wanchit rah gaya. jab ki mai bhi is sab ka ang hu thanks sharmaji aap se is seen ka sachitra varnan kiya
savinay loyal
राकेश जी,
प्रेरक प्रसंग जिसका जिक्र और इससे प्रेरणा सभी ने लेना चाहिये। हम किस कदर गैर जिम्मेदार हो गये हैं कि जब भी राष्ट्रगीत बज रहा हो/गाया जा रहा हो या धुन पर बज रहा हो हम अपने में ही लिप्त रहते हैं, क्या कभी राष्ट्र को अपने से ऊपर समझ पायेंगे हम?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
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