मोबाइल के घर
जब भूल से भी आता है कोई
प्रसन्नता से जग -- मग
हो उठती है उसकी काया
मेहमान के आने की खुशी
गा गा कर सुनाता वह
महानगर के निवासी
संभ्रांत कहे जाने वाले हम
बुझे चहरे और सरगम हीन भाषा में
अतिथि का करते हैं स्वागत
क्या मोबाइल से हम
स्वागत संस्कार सीख सकते हैं
2 टिप्पणियां:
मानव का बनाया यन्त्र है . जिस दिन ईश्वर की रचना यानी आदमी की तरह हो जायेगा सारे अनचाहे आचरण ये भी करने लगेगा .
बहरहाल , कविता अच्छी है .
और लिखिए .
होली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
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