मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

पश्चिम एशिया और ऋग्वेद - प्रथम संस्करण 1994 - भूमिका

these lines have been taken from historical book ' pashcim ashiya aur rigved'of Dr. Ramvilas sharma’ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनके लिए इतिहास, विषेष रूप से प्राचीन भारत के इतिहास की समस्याओं से जूझना वक्त की बर्बादी है। कुछ की दृष्टि में सभी समस्याएं हल हो चुकी हैं और उन्हें नए सिरे से उलझाने की कोषिष करना फिज़ूल है। कुछ अन्य के लिए आज के ज्वलंत प्रष्नों और वर्तमान चुनौतियों से मुॅह मोड़कर यह एक विषुध्द अकादमिक मषक्कत है। हैरानी तो यह देख कर होती है कि इतिहास और परम्परा का निषेध करने वालों में ऐसे विद्वान भी शामिल हैं जो ऐतिहासिक भौतिकवाद के सिध्दान्तों से प्रतिबध्दता के दावे करते है।’’

पृष्ठ 01

’’सिन्धु सभ्यता का विनाष आर्यों से नहीं किया, बल्कि इस सभ्यता की नींव ऋग्वेद के रचनाकार आर्यों के वंषजों ने डाली थी। इस सभ्यता का हृास (लगभग 1750 ई.पू. में) कम से कम पंजांब में, यमुना और सतलुज नदियों के मार्ग परिवर्तन के फलस्वरूप सरस्वती में जल की भारी कमी के कारण हुआ था। यह आर्यों के तथाकथित हमलों और किसी बड़े विध्वंस की कहानी न होकर पर्यावरण में परिवर्तन के फल स्वरूप ही हुआ था। सिन्धु सभ्यता के मात्र मोहेंजोन्दड़ों और हडप्पा ही प्रमुख केन्द्र नहीं थे जो अब पाकिस्तान में चले गए, बल्कि इस सभ्यता का अत्यंत महत्वपूर्ण केन्द्र कालीवंगा जो राजस्थान में सरस्वती नदी के किनारे बसा हुआ था। इसके विनाष की वजह सरस्वती के जल में भारती कमी और जलमार्ग में आया हुआ परिवर्तन था। वह राजस्थान से होती हुई सिंध की तरफ बहने के बदले पूरब की ओर घूम यमुना के जलमार्ग से प्रयाग की ओर बहने लगी थी और राजस्थान में उसका लोप हो गया था।’’

पृष्ठ 12-13

’’दूसरी सहस्त्राब्दी ई.पू. बड़े-बड़े जन अभियानों की सहस्त्राब्दी है। इसी के दौरान भारतीय आर्यों के दल इराक से लकर तुर्की तक फैल जाते हैं। वे अपनी-अपनी भाषा और संस्कृति की छाप सर्वत्र छोड़े जाते हैं। पूंजीवादी इतिहासकारों ने उल्टी गंगा बहाई है जो युग आर्यों के बहिर्गमन का है उसे वे भारत में उनके प्रवेष का युग कहते हैं। इसके साथ वे यह प्रयास करते हैं कि पष्चिम एषिया के वर्तमान निवासियों की आॅखों से उनकी प्राचीन संस्कृति का वह पक्ष ओझल रहे जिसका संबंध भारत से है। सबसे पहले स्वयं भारतवासियों को यह संबंध समझना है, फिर उसे अपने पड़ोसियों को समझाना है। भुखमरी, अषिक्षा, अंधविष्वास और नए-नए रोज फैलाने वाली वर्तमान समाज व्यवस्था को बदलना है। इसके लिए भारत और उसके पड़ोसियों का सम्मिलित प्रयास आवष्यक है यह प्रयास जब भी हो, यह अनिवार्य है कि तब पड़ोसियों से हमारे वर्तमान संबंध बदलेंगे और उनके बदलने के साथ वे और हम अपने पुराने संबंधों को नए सिरे से पहचानेंगे। अतीत का वैज्ञानिक, वस्तुपरक विवेचक वर्तमान समाज के पुर्नगठन के प्रष्न से जुड़ा हुआ है।’’

पृष्ठ 20

7 टिप्‍पणियां:

प्रदीप कांत ने कहा…

अच्छी पोस्ट

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Sir I want to read paschim Asia air rig bed by ram vilasji.how can I get it please let meknow

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Please tell me the book paschim Asia aur rigved
by ram vilasji where do I get it

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Fine.dear Rakesh ji paschim Asia aur rigved kaha milthehai please let me know

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Rakesh ji namasthe.iam a writer in Telugu fond of Hindi literature and language.where do I get the book paschim Asia aur rigved please let me know.

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Sir namaste. Tine din beethgaye muze ramvilasjika paschim asia aur Rigveda nahi mil Saka Kay aap is Milan me shayatha Karenge. Karetho muz jais Dhanya aur Kosi nahi Hoga

Dr. I.venkataramana ने कहा…

Sir namaste. Tine din beethgaye muze ramvilasjika paschim asia aur Rigveda nahi mil Saka Kay aap is Milan me shayatha Karenge. Karetho muz jais Dhanya aur Kosi nahi Hoga