हिन्दी कविता के उद्भव और विकास पर कुमुदनी खेतान की पुस्तक '' स्वान्ता सुखाय ''एक महत्वपूर्ण रचना है । साहित्य के क्रमिक विकास समझने में पुस्तक बहुत मददगार है । हजार वर्ष की हिन्दी कविता यात्रा को सुरुचि पूर्ण ढंग से रखा गया है । यह पुस्तक हिन्दी कविता की ''गोल्डन ट्रेजरी'' होने का सही अधिकार रखती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी कविता को उसकी प्रव्रत्तियों के अनुसार काल खण्डों में विभाजित किया है उसी मानक पर इस पुस्तक की संपादिका ने कवियों और उनकी रचनाओं को हमारे सामने रखा है । हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषा का इतिहास जानने के लिए यह एक आधारभूत ग्रन्थ जैसी है । संपादिका ने हिदी के पहले कवि स्वयंभू , पुष्पदन्त ,कदहापा ,सरहपा से लेकर अभी तक के एक सौ कवियों को पुस्तक में स्थान दिया है । कविताओं के साथ -साथ कवियों का संक्षिप्त परिचय देकर तथ्यों को संग्रहनीय बनाया गया है .इतने तथ्यों को संग्रहीत करना ,उन्हें क्रम से रखना बहुत कौशल की मांग करता है । ऐतिहासिक महात्व की इस पुस्तक का अध्ययन हिन्दी साहित्य को समझने की इक्क्षा रखने वाले , शोधार्थी और जिग्याशों को अवश्य करना चाहिए । ---पुस्तक ''स्वान्ता सुखाय '', संपादिका -कुमुदनी खेतान , मूल्य रु -तीन सौ , प्रकाशक , नेशनल पब्लिशिंग , हॉउस तेईस , दरियागंज , नई दिल्ली । प्रस्तुती -- राकेश शर्मा
मंगलवार, 11 मई 2010
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3 टिप्पणियां:
हिन्दी कविता की जड़ें बहुत प्राचीन हैं ।
आज किसीके पास इतना समय नहीं है कि वह
वहां तक पहुंचने का प्रयास करे ।
सुश्री कुमुदनी खेतान ने लगभग असंभव कार्य कर दिया है ।
अब आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी जगत में
इस पुस्तक का सम्मान व स्वागत हो ।
राकेशजी आपका प्रयास वंदनीय है ।
एक जबरजस्त प्रस्तुति जिसने संक्षिप्त होते हुए भी मेरा अतुलनीय ज्ञानवर्धन किया। पुस्तक को पढ़ने के लिए मन लालायित हो उठा है परंतु ग्रामीण हूँ तुरंत तो संभव नहीं है जब कोलकाता की यात्रा का संयोग बनेगा तभी ये पुस्तक खरीद पाऊँगा।
janakari ka prayas sarahneeya hai
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