आचार्य राम चंद शुक्ल के बाद हिंदी आलोचना में डॉ रामविलास शर्मा का स्थान आता है ।उन्होंने भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश पुस्तक में अनेक विमर्शों को हमारे सामने रखा है इसी पुस्तक का एक प्रसंग मैं यहाँ दे रहा हूँ ---
’’उल्लेखनीय है कि हेगल भारतीय दर्शन से परिचित थे। भारतीय दर्शन का परिचय देने वाले विलियम जोन्स और कोलवक जैसे विद्वानों के लेख ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़े जाते थे। दर्शन शास्त्र के इतिहास पर अपने व्याख्यानों में हेगल ने न्याय वैशेषिक आदि दार्षनिक धाराओं का उल्लेख किया है। मार्क्स और एंगेल्स ने हेगल पर जो कुछ लिखा है उसे देखने पर ऐसा लगता है, यूनानियों के बाद लगभग डेढ़ हजार साल तक यूरोप का तर्कषास्त्र सोता रहा। 18 वीं सदी के अन्तिम चरण में हेगल ने इस सोते हुए तर्कषास्त्र को मानो अचानक जगा दिया। संसार सत्य नहीं है, विचार ही सत्य है। द्वंद्वात्मक प्रगति विचार-जगत् में सम्पन्न होती है। परस्पर विरोधी विचारों का टकराव उनका सह अस्तित्व और सामंजस्य, एक स्तर से ऊपर उठकर दूसरे पर नया विकास -ये धारणाएं हेगल को कहां से प्राप्त हुई ? यदि वे यूनानी चिन्तन में विद्यमान होती तो हेगल के लिए कहा जाता, वह उनकी आवृत्ति कर रहे हैं। उन्हें मौलिक तर्कषास्त्री न माना जाता। पर उन्हें मौलिक तर्कषास्त्री माना गया है और उनकी तर्क-पध्दति गर्व के साथ माक्र्स और एंगेल्स ने स्वीकार किया है। हेगल की तर्क पध्दति के मूल तत्व विरोधी तत्वों का संघर्ष और सामंजस्य, एक तत्व का दूसरे तत्व मेें परिवर्तन, प्रकृति में निरंतर परिवर्तन और विकास, ये धारणाएं उपनिषदों में ही वहीं उनसे पहले ऋग्वेद में विद्यमान हैं। हेगल ने मानव चेतना को प्रकृति से अलग रखने का प्रयत्न बराबर किया है। प्रकृति दोषपूर्ण है, शुध्द चैतन्य, निर्दोष परम सत्य उससे भिन्न है। इस यथार्थ विरोधी चिन्तन के विपरीत भारत में प्रकृति को अनादि अनंत माना गया है। असत से सत का अव्यक्त प्रकृति से व्यक्त प्रकृति का विकास हुआ है, यह सांख्य की आधार भूत स्थापना है। मनुष्य की चेतना, उसका मन, उसकी बुध्दि, अहंकार आदि इसी विकास क्रम में उत्पन्न होते हैं। भारतीय दर्शन के इतिहास को जानने के लिए एक स्त्रोत ग्रंथ महाभारत है। प्रकृति के विकास में सांख्य ने 24 तत्व ही माने थे। 25 वें तत्व चेतन पुरूष को इनमें जोड़ा गया, यह महाभारत के विवरणों से स्पष्ट है। प्रकृति और मानव चेतना में जो अलगाव हेगल के चिंतन में दिखाई देता है- वह भारतीय दर्षन में नहीं है। साहित्य पर हेगल का प्रभाव नगण्य है। हेगल की तर्क पध्दति ने माक्र्स और एंगेल्स को चाहे प्रभावित किया हो, उनक सामाजिक विष्लेषण पर हेगल के विचारों का प्रभाव नहीं है। हेगल की भारत संबंधी धारणाएं उन्होनें अवष्य दोहराईं। आगे चलकर उन्होनें इन धारणाओं को उलट दिया। इसके सिवा हेगल की तर्क-पध्दति में कुछ यांत्रिक विषेषताएं थीं, उनसे भी उन्होंने पिंड छुड़ाया। पष्चिमी यूरोप और ब्रिटेन के साहित्य पर जितना प्रभाव प्लैटों का है, उसे देखते हुए इस साहित्य पर हेगल का प्रभाव नगण्य है। कारण उसका यथार्थवादी स्वरूप।’’ [
’’उल्लेखनीय है कि हेगल भारतीय दर्शन से परिचित थे। भारतीय दर्शन का परिचय देने वाले विलियम जोन्स और कोलवक जैसे विद्वानों के लेख ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़े जाते थे। दर्शन शास्त्र के इतिहास पर अपने व्याख्यानों में हेगल ने न्याय वैशेषिक आदि दार्षनिक धाराओं का उल्लेख किया है। मार्क्स और एंगेल्स ने हेगल पर जो कुछ लिखा है उसे देखने पर ऐसा लगता है, यूनानियों के बाद लगभग डेढ़ हजार साल तक यूरोप का तर्कषास्त्र सोता रहा। 18 वीं सदी के अन्तिम चरण में हेगल ने इस सोते हुए तर्कषास्त्र को मानो अचानक जगा दिया। संसार सत्य नहीं है, विचार ही सत्य है। द्वंद्वात्मक प्रगति विचार-जगत् में सम्पन्न होती है। परस्पर विरोधी विचारों का टकराव उनका सह अस्तित्व और सामंजस्य, एक स्तर से ऊपर उठकर दूसरे पर नया विकास -ये धारणाएं हेगल को कहां से प्राप्त हुई ? यदि वे यूनानी चिन्तन में विद्यमान होती तो हेगल के लिए कहा जाता, वह उनकी आवृत्ति कर रहे हैं। उन्हें मौलिक तर्कषास्त्री न माना जाता। पर उन्हें मौलिक तर्कषास्त्री माना गया है और उनकी तर्क-पध्दति गर्व के साथ माक्र्स और एंगेल्स ने स्वीकार किया है। हेगल की तर्क पध्दति के मूल तत्व विरोधी तत्वों का संघर्ष और सामंजस्य, एक तत्व का दूसरे तत्व मेें परिवर्तन, प्रकृति में निरंतर परिवर्तन और विकास, ये धारणाएं उपनिषदों में ही वहीं उनसे पहले ऋग्वेद में विद्यमान हैं। हेगल ने मानव चेतना को प्रकृति से अलग रखने का प्रयत्न बराबर किया है। प्रकृति दोषपूर्ण है, शुध्द चैतन्य, निर्दोष परम सत्य उससे भिन्न है। इस यथार्थ विरोधी चिन्तन के विपरीत भारत में प्रकृति को अनादि अनंत माना गया है। असत से सत का अव्यक्त प्रकृति से व्यक्त प्रकृति का विकास हुआ है, यह सांख्य की आधार भूत स्थापना है। मनुष्य की चेतना, उसका मन, उसकी बुध्दि, अहंकार आदि इसी विकास क्रम में उत्पन्न होते हैं। भारतीय दर्शन के इतिहास को जानने के लिए एक स्त्रोत ग्रंथ महाभारत है। प्रकृति के विकास में सांख्य ने 24 तत्व ही माने थे। 25 वें तत्व चेतन पुरूष को इनमें जोड़ा गया, यह महाभारत के विवरणों से स्पष्ट है। प्रकृति और मानव चेतना में जो अलगाव हेगल के चिंतन में दिखाई देता है- वह भारतीय दर्षन में नहीं है। साहित्य पर हेगल का प्रभाव नगण्य है। हेगल की तर्क पध्दति ने माक्र्स और एंगेल्स को चाहे प्रभावित किया हो, उनक सामाजिक विष्लेषण पर हेगल के विचारों का प्रभाव नहीं है। हेगल की भारत संबंधी धारणाएं उन्होनें अवष्य दोहराईं। आगे चलकर उन्होनें इन धारणाओं को उलट दिया। इसके सिवा हेगल की तर्क-पध्दति में कुछ यांत्रिक विषेषताएं थीं, उनसे भी उन्होंने पिंड छुड़ाया। पष्चिमी यूरोप और ब्रिटेन के साहित्य पर जितना प्रभाव प्लैटों का है, उसे देखते हुए इस साहित्य पर हेगल का प्रभाव नगण्य है। कारण उसका यथार्थवादी स्वरूप।’’ [
2 टिप्पणियां:
डॉ. रामविलास शर्मा की आलोचनात्मक दृष्टि के संबंध में आगे और जानने की इच्छा है. हेगल से परिचय कराने के लिए धन्यवाद.
डा.रामविलास शर्मा का साहित्य आम लोगों तक पहुँचना चाहिए।
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