जवाहर चौधरी का नाम हिन्दी व्यंग्य के महात्वपूर्ण लेखकों में आता है । श्री चौधरी समाज में व्याप्त कुरूपताओं पर तीखा व्यंग्य करते हैं । उनके व्यंग्यों की भाषा सहज और प्रभाव गहरा होता है । मुहावरों के प्रयोग से उनके व्यंग्य अन्य व्यंगकारों से अलग पहचान बनाते हैं । सामयिक विडम्बनाओं पर उनका व्यंगात्मक चिंतन बहुत प्रभावशाली होता है । किसी निर्धारित विचार धारा और पूर्वाग्रह से दूर श्री चौधरी अपने मन की बात निडर होकर लिखते हैं । यह उनके लेखन की सबसे बड़ी ताकत है । अब तक उनके ६ व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । उनकी व्यंग्य यात्रा बहुत लम्बी है । उन्हे अब तक मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का ''शरद जोशी सम्मान '' , कादम्बनी पत्रिका का अखिल भारतीय पुरुस्कार प्राप्त हुआ है । अभी हाल ही में उनका नया व्यंग्य संग्रह 'श्रेष्ट व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित हुआ है । इस संग्रह से एक व्यंग्य आप के लिए यहाँ दिया जा रहा है ।
सारी भगत
सुपर बाजार में बार बार मुझे भगवान याद आने लगे तो मैंने एक तरफ खड़े हो कर प्रर्थाना की - ‘‘ हे भगवान !! उफ ये बाजार ! रक्षा कर प्रभु । ’’ ।
अचानक आवाज आई - ‘ क्या बात है भगत ? मुझ लाचार को क्यों याद कर रहे हो ? ’
भगवान पास ही शोकेस में सजे पड़े थे , गले में प्राइज-टेक भी लटक रहा था । उनके सामने एक कार्ड लगा था जिसके अनुसार वे किसी खास कंपनी का प्राडक्ट बताए जा रहे थे । उन्हें ‘शो-पीस और गिफ्ट आर्टिकल’ की केटेगिरी में डिस्प्ले किया गया है । एक लम्बा सा बूढ़ा आदमी जिसने वैसी दाढ़ी रखी हुई थी जैसी कि देश भर के लाखों लोग इन दिनों रखते हैं , मार्केकेटिंग करते हुए बता रहा था कि कैसे भगवान के कारण उसे सफलता , शांति और रेखा मिली ।
बाजार में, यानी सुपर बाजार में जगह जगह खुफिया कैमरे लगे होते हैं और यदि कोई भगवान को याद करने लग जाए तो उसे भी देखा और रोका जाता होगा । भरे बाजार में ग्राहक अदि भगवान को याद करने लगे तो गलत संदेश जाता है । वैसे मुझे केवल इतना सुनाई दिया था कि .‘‘...... क्यों याद कर रहे हो ? ’’ मैं डर गया । आसपास कोई था नहीं । अपने आप से सवाल किया कि ये कौन बोला !
‘‘ मैं बोला भगत , अभी तुमने प्रर्थना की थी ना ? बोलो क्या कष्ट है ? ’’ भगवन अपनी आदत के अनुसार बोले ।
‘‘ कष्ट-वष्ट क्या भगवान , मंहगाई से आदमी परेशान है ......।’’
‘‘ आदमी कौन ? ’’
‘‘ आदमी ! .....कोई भी.... हर कोई ...., मैं .... मैं आदमी ...’’
‘‘ तुम आदमी नहीं यहां ग्राहक हो .... एक कंज्यूमर .....। ’’
‘‘ एक ही बात है , ग्राहक भी तो आदमी होता है । ’’
‘‘ बाजार में कोई आदमी नहीं होता वत्स । ..... मेरी हालत देखो ....... लोग ऐसे देखते हैं जैसे हाट में घोड़े या बैलों को देखते हैं ! ... राजनीति ने मुझे मुद्दा बनाया था अब बाजार ने मुझे आयटम बना दिया ! ’’
‘‘ लेकिन काउंटर पर तो आपकी पूजा होती है .....बाकायदा हार-अगरबत्ती सब होता है । ’’
‘‘ मेरी नहीं ..... बाजार में सिर्फ पैसे की पूजा होती है । फायदा हो तो लोग नीबू-मिर्ची को भी पूजने लगते हैं । ’’ दीनानाथ दीनहीन होने लगे ।
‘‘ आप ही सब करने कराने वाले हो । बाजार किसने बनाया ?..... अब बनाया है तो भुगतो । ’’ गलती चाहे भगवान करे , गुस्सा तो आता ही है ना , मुझे भी आया ।
‘‘ बाजार मैंने नहीं बनाया भगत , मैंने तो सृष्टि रची थी । लेकिन देखो मेरी सृष्टि बाजार में आ गई है । हवा , पानी , धरती आकाष , पेड़-पौधे , फल-फूल , मान-मर्यादा , शरीर और सारे अंग ! हर चीज बाजार में है , हर चीज का बाजार है ! ’’ दीनानाथ रूंआसे से हो गए
‘‘ आप तो सक्षम है , नेताओं से बात कीजिये ना । ’’
‘‘ नेता बात ही कहां करते हैं । कहते हैं चुप रहिये ......... पहले मंदिर बनाएंगे उसके बाद शान्ति से बैठ कर बातें करेंगे । ’’
‘‘ छोड़िये उन्हें , ........ कांग्रेसियों से बात कीजिये । ’’
‘‘ उन्हें परिवार पूजन से फुर्सत हो तब ना । ’’
‘‘ कम्यूनिस्टों से कहिये ..... वे तो बाजार संस्कृति के खिलाफ है । ’’ हमने गर्व से कहा ।
‘‘ वे तो मेरे ही खिलाफ हैं ........... और इस बाजार ने क्या उन्हें भी गुलाबी नहीं बना दिया है ? ........ समाजवादी अब सेठ हो गए है ......। ’’ भगवान अनमने से हो गए ।
‘‘ छोड़िये सबको ...... मेनका गांधी से बात कीजिये ....... वो सबकी सहायता करने पर हमेशा उतारू रहतीं हैं । आप गजानन हो..... आपको अनसुना नहीं कर सकेंगी । ’’
हमें भगवान के पास ज्यादा देर रूका देख सेल्समेन सहायता के लिये पास आया । भगवान सहम कर चुप हो गए । उसने आते ही बताया कि ‘ ये ’ बहुत अच्छा पीस है । उनके शोरूम पर हर माल देखभाल कर , संतुष्ट होने के बाद ही रखा जाता है । कीमत थोड़ी ज्यादा है लेकिन गैरंटी देंगे । दो साल में अगर पीस का रंग उड़ जाए या फीका पड़ जाए तो बदल कर देंगे । साथ में एक स्क्रेच कार्ड भी है । स्क्रेच करेंगे तो गिफ्ट मिलेगा । दो माह बाद शोरूम का अपना बंपर ड्रा होने जा रहा है उसमें आपको मौका मिलेगा । पहला इनाम मारूति कार है । उसने खासतौर पर बताया कि पिछली बार इनाम एक मिडिल क्लास को ही खुला था । अलावा इसके उनका शोरूम दो पास देगा जिससे अगले तीस दिनों तक बाजार से खरीदी पर कुछ डिस्काउंट मिलेगा । इतना व्याख्यान देने के बाद वह मुस्कराते हुए बोला - पैक करवा दूं सर ?
मेरी इच्छा थी कि कह दूं यहां सब मंहगा है , गैरजरूरी चीजों को खरीदवा देने के लिये दबाव बनाया जाता है । मोलभाव करने वाले को दूध में नजर आ गई मक्खी समझा जाता है । या असल बात यह कि मेरे पास पैसे नहीं हैं । लेकिन मैं चाह कर भी कह नहीं पाता ।
‘‘ पैक करवा दूं सर ? ’’ इस बार कहते हुए उसने भगवान को शोकेस से बाहर खेंचा ।
‘‘ रूकिये , अभी नहीं , मैं फिर कभी ले जाउंगा । ’’ मैंने कहा । उसकी आंखें चमकीं , जैसे कुछ ताड़ लिया हो ।
‘‘ फिर कभी क्यों सर ? ..... क्या कैश खत्म हो गया है ? ’’
‘‘ हां । ‘‘
‘‘ क्रेडिट कार्ड नहीं है ? ’’ इस बार उसने ‘आप’ और ‘सर’ का इस्तेमाल नहीं किया ।
‘‘ तो फिर यहां क्या कर रहे हो ? ’’
‘‘ क्यों भई ! बाजार है ...... कोई भी आ सकता है .....’’
‘‘ बिना पैसे के बाजार में आना क्राइम है ..... समझे ...। ..... गार्ड ..... गार्ड ..... इधर आना ....’’
मैं कुछ कहूं इसके पहले गार्ड आ जाता है । ‘‘ इनको गेट दिखाओ । ’’ कह कर वह चला जाता है । मैं लौटता हूं । पीछे से आवाज सुनाई देती है ‘ सारी भगत ’ ।
1 टिप्पणी:
यार इतना बढिया व्यंग्य मै इतनी देरी से पढ पा रहा हून धिक्कर हूँ। खैर देर आया दुरुस्त आया।
एक टिप्पणी भेजें