बसंत पंचमी को महाकवि निराला का जन्म दिन मनाया जाता है . यहबात सही कि उनका जन्म बसंत पंचमी को नहीं हुआ था . वे जिस दिन जन्में थे उस दिन बसंत पंचमी नहीं थी . बसंत पंचमी मा सरस्वती का जन्म दिन माना जाता है . निराला अपने को सरस्वती का पुत्र मानते थे .वे थे भी . . वे कहते हैं कि ''मैं हूँ बसंत का अग्र दूत / ब्राम्ह्ड समाज में जियों अछूत''. हिन्दी साहित्य और भषा में एक साथ इतने प्रयोग करने वाले वे अकेले रचना कार हैं. हिन्दी का विकास उनकी पहली चिंता थी . सन १९३५ में सुधा पत्रिका की संपादकी में निराला लिखते हैं ---'' हिन्दी साहित्यकारों ने हिन्दी के पीछे तो अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया है ,प़र हिन्दी भाषियों ने उनकी तरफ वैसा ध्यान नहीं दिया -- सतांश भी नहीं . वे सहितियिक इस समय जिस कठिनता का सामना कर रहे हैं , उसे देख कर किसी भी सहिरदय की आँखों में आंसू आ जाएँ . चुपचाप वे आर्थिक कष्ट को सहन करते हुए साहित्य का निर्माद करते जा रहे हैं बदले में उन्हें अनाधिकारी साहित्यको से लांछन और असंस्कृत जनता से अनादर प्राप्त हो रहा है . [ सुधा जून ३५ संपादित टिप्पड़ी २ ]
निराला की चिताएं आज के रचना कारों के सामने भी मौजूद हैं . हिन्दी में एक समय आया जब रचनाकारों को प्रगतिवाद , जनवाद , कलावाद के नाम प़र बाँट कर देखा गया . परिणाम यह हुआ कि हिन्दी प्रदेश की जनता
में यह सन्देश गया कि साहित्य अब केवल राजनीत का विषय है ,समाज से उसका कोई सरोकार नहीं है .
डॉ रामविलास शर्मा ने इस पूरे परिद्रश्य प़र प्रकाश डालते हुए लिखा ;; सन १८५७ के स्वाधीनता - संग्राम के बाद अंग्रेजों ने हर संभव उपाय हिन्दी भाषी प्रदेश की सामाजिक - सांस्कृतिक प्रगति में बाधा डाली . औधोगिक विकास में पीछे , निरक्षरता में आगे , छोटे बड़े प्रान्तों में विभाजित , तालुकेदारों , जमीदारों का गढ़ , भाषा का अकेला भाषा क्षेत्र जिसकी बोल चाल की भाषा एक लेकिन साहित्य भषाएँ दो , भारत अकेला भाषा क्षेत्र जिसमें इक मुस्लिम विस्वविध्यालय , एक हिन्दू विश्वविध्यालय , भारत का वह भाषाखेत्र जिसमें सबसे ज्यादा बोलियाँ हैं , जिसमें जात्तीय चेतना का सबसे अभाव है , जिसपर अंग्रेजों का प्रभुत्व सबसे ज्यादा है ऐसा है हमारा हिन्दी भाषी क्षेत्र . अंग्रेजों के जाने के बाद उसकी इस स्थिति में मौलिक परिवर्तन नहींहुआ.
हिन्दी प्रदेश की भाषाई हालत समझे बिना देश में भषा का आन्दोलन खडा नहीं किया जा सकता . आज सबसे बड़ी जरूरत हिन्दी को बचाने और उसे प्रसारित करनी की है . महाकवि निराला के जन्म दिन प़र हमें हिदी के विकास विकास का संकल्प लेना चाहिए . यही उनके प्रति सच्ची श्रधान्जली होगी केवल भाषण दे कर बात समाप्त करने वालों का अनुकरण बेकार है .
निराला की चिताएं आज के रचना कारों के सामने भी मौजूद हैं . हिन्दी में एक समय आया जब रचनाकारों को प्रगतिवाद , जनवाद , कलावाद के नाम प़र बाँट कर देखा गया . परिणाम यह हुआ कि हिन्दी प्रदेश की जनता
में यह सन्देश गया कि साहित्य अब केवल राजनीत का विषय है ,समाज से उसका कोई सरोकार नहीं है .
डॉ रामविलास शर्मा ने इस पूरे परिद्रश्य प़र प्रकाश डालते हुए लिखा ;; सन १८५७ के स्वाधीनता - संग्राम के बाद अंग्रेजों ने हर संभव उपाय हिन्दी भाषी प्रदेश की सामाजिक - सांस्कृतिक प्रगति में बाधा डाली . औधोगिक विकास में पीछे , निरक्षरता में आगे , छोटे बड़े प्रान्तों में विभाजित , तालुकेदारों , जमीदारों का गढ़ , भाषा का अकेला भाषा क्षेत्र जिसकी बोल चाल की भाषा एक लेकिन साहित्य भषाएँ दो , भारत अकेला भाषा क्षेत्र जिसमें इक मुस्लिम विस्वविध्यालय , एक हिन्दू विश्वविध्यालय , भारत का वह भाषाखेत्र जिसमें सबसे ज्यादा बोलियाँ हैं , जिसमें जात्तीय चेतना का सबसे अभाव है , जिसपर अंग्रेजों का प्रभुत्व सबसे ज्यादा है ऐसा है हमारा हिन्दी भाषी क्षेत्र . अंग्रेजों के जाने के बाद उसकी इस स्थिति में मौलिक परिवर्तन नहींहुआ.
हिन्दी प्रदेश की भाषाई हालत समझे बिना देश में भषा का आन्दोलन खडा नहीं किया जा सकता . आज सबसे बड़ी जरूरत हिन्दी को बचाने और उसे प्रसारित करनी की है . महाकवि निराला के जन्म दिन प़र हमें हिदी के विकास विकास का संकल्प लेना चाहिए . यही उनके प्रति सच्ची श्रधान्जली होगी केवल भाषण दे कर बात समाप्त करने वालों का अनुकरण बेकार है .
2 टिप्पणियां:
निराला जी को दिल से श्रद्धांजलि
एक टिप्पणी भेजें