रविवार, 13 फ़रवरी 2011

कामायनी के भाषीय औदात्य को समझाती पुस्तक

डॉ सुरुचि मिश्रा की पुस्तक '' कामायनी का भाषायी औदात्य '' प़र  चर्चा गोष्ठी आयोजित हुई . राकेश शर्मा ने  पुस्तक की भूमिका पढ़ कर चर्चा के लिए प्रष्ठ भूमि तैयार की .डॉ  पुरुषोत्तम दुबे  नें पुस्तक प़र विचार प्रकट करते हुए कहा की लेखिका नें कामायनी में प्रयुक्त शब्दावली की गहरी मीमांशा की है . यह पुस्तक कामायनी के अर्थ समझने में पाठक की बहुत मदद करती है . श्री जय शंकर प्रसाद ने पूरे  भारतीय चिंतन कामायनी में प्रस्तुत किया है . यह चिंतन  वैदिक  शब्दावली भी साथ लेकर चला है .वैदिक शब्दावली आज के पाठक की समझ दूर होती जा रही है . ऐसी स्थिति में यह पुस्तक प्रयोजनीय मालूम पडती है . लेखिका नें बहुत श्रम पूर्वकं इसे लिखा है . डॉ ओम  ठाकुर  नें कहा की कामायनी आधुनिक समय का सबसे आधिक महत्व पूर्ण महाकाव्य है .ऐसे महाकाव्य को समझानें की दिशा में यह पुस्तक एक उचित प्रयास है . डॉ जवाहर चौधरी नें कहा नें इस पुस्तक मूल्य एक आम पाठक की बजाय एक एकेडमिक और  शोधार्थी के लिए ज्यादा है . वरिष्ठ कवि श्री क्रष्ण कान्त निलोसे ने कहा कि कविता करते समय कवी को विराट में प्रवेश करना होता है . यह एक समाधि की अवस्था होती है . उस अवस्था में शब्द स्वं ही कवी तक पहुंच जाते हैं . यही सब प्रसाद के साथ हुआ है . जिसका परीक्षण इस पुस्तक में लेखिका नें किया है . ख्यात गजलकार  श्री चन्द्र भान भारदुआज ने कहा कि रचना प्रकिया से गुजरते समय कवि की जो चेतना है वही उसका आध्यात्म होता है . श्री गोपाल माहेश्वरी ने कहा एक रचनाकार का चिंतन जिस स्तर का होगा उसके शब्दों का चयन भी वैसा ही होगा . इनके अलावा पुस्तक चर्चा में श्री रविश त्यागी , श्री मती रंजना फ्तेपुरकर ने भी भाग लिया . आभार आशु कवि प्रदीप नवीन नें माना .

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