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अन्ना हजारे के आन्दोलन में शरीक हुए अभिनेता |
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अन्ना और अग्निवेश |
कई वर्षों से यह मुहीम चलाई जा रही थी की गांधी जी इस २१वी शदी में प्रासंगिक नहीं बचे . लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आन्दोलन ने यह प्रमाडित कर दिया की २१वी सदी में अगर किसी कोई विचार सबसे अधिक प्रासंगीक है तो वे गांधी जी के विचार हैं . अन्ना हजारे का पूरा आन्दोलन शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ . अपने उद्देश्य में सफल रहा . इस आन्दोलन ने कई सबालों के जबाब दिए और कई नये सबाल हमारे सामने खड़े भी किये.राष्ट्र की चिंता में नई पीढी सामने आई .जिसके बारे में यह मान लिया गया है की इस पीढी के सरोकार राष्ट्र और समाज से कट गए हैं . इस बात में संदेह नहीं है की यह पीढी सब तरह से अलग है पर ऊपर से बहुत अलग थलग दीखते हुए भी इसकी अपनी समझ है ,अपनी प्रतिभा है . जहां - जहां पथ भ्रष्ट है वहां -वहां इसका नहीं ,हमारा दोष है , शिक्षा का दोष है , केवल नई पीढी को दोषी नही ठहराया जा सकता . अन्ना के आन्दोलन में नव युवक ,नव युवतियां जुडीं . इस बात को स्वम अन्ना ने भी स्वीकार किया . सबाल ये है की ये लोग अन्ना हजारे को नया गाधी कह रहे थे . इस पीढी ने गांघी को नहीं देखा फिर भी इसके मन में कहीं न कहीं गांधी की एक ऐसी छवि है जो भरोसा दिलाती है की बिना रक्तपात किये हुए भी परिवर्तन सम्भव है . और रक्तपात करके भी क्रान्ति सम्भव नहीं हो पाती . दोनॉ ही बातें हमारे सामने हैं .नक्सली आन्दोलन के चलते कितना खून बह चुका है पर नातो सरकार झुकी और न ही आन्दोलन आपनी किसी शक्ल में बदलता दिखाई पड रहा है . परिस्थितियाँ अलग हो सकती है. पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की जो अहिंसक मार्ग गांधी ने हमें दिखाया है , सब तरह से वही ठीक है . जितनी विसंगतियां हमारे सामने हैं .उन्हें मिटाने के लिए अगर गोली का सहारा लिया जाए तो ,यह तो नहीं कहा जा सकता कि वे विसंगति समाप्त होगी पर इतना तो कहा जा सकता है की अनेक विसंगतियाँ और जन्म ले लेंगी . असल में गांघी का रास्ता आदमी का आतंरिक परिवर्तन कर बदलाव पैदा करता है . क्रान्ति का जो रास्ता मार्क्स ने हमें दिखाया वह समय के प्रवाह में पूरी तरह अनउपयुक्त सिद्ध हो चुका है . किसी प्रजातांत्रिक व्यावस्था में खून खराबे की लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए . जहां -जहां सत्ता हिंसा के रास्ते से प्राप्त हुई है वहाँ -वहां उसे बनाए रखने के लिए और अधिक खून बहाने जरूरत हुई है . हिंसा की अंतिम तस्वीर केवल हिंसा में ही बदली है . आज समय की जरूरत है की छोटे -छोटे जन आंदोलनों से हम अपने समय की समस्याओं को हल कर सकते हैं . यह अवश्य ध्यान रखना होगा की कोई गांधी आकर हमारे समय को संबोधित करेगा , यह होने वाला नहीं है . अना हजारे का यह आन्दोलन अनेक तरह की आशाओं को जन्म दे गया , सूनी आँखों में सपने दिखने का अवसर दिए , अँधेरे समय को प्रकाश की एक किरण , और पूरे समाज को एक आलम्बन . भ्रंश से ही उम्मीद के अवसर पैदा होते हैं . यह पुस्तकों में तो था इसे 9 अप्रैल 2011 को जंतर -मंतर नई दिल्ली में सामने घटते हुए भी देखा है .
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लोग जो परिवर्तन के पक्ष में हें |
1 टिप्पणी:
गांधीजी से किसी की भी तुलना करने से पहले बहुत सावधानी की जरुरत है . गांधीजी ने अपने आन्दोलन से पहले जनता को सब कुछ छोड़ कर मरने मिटने के लिए तैयार किया था . आज के आन्दोलन में भौतिक सुख सुविधओं के आदी लोग जुटे हैं . इलेट्रोनिक मिडिया तो इतना चिल्ला रहा है मानो वो दूध का धुला हो !!! जेबकतरा खुद पकड़ो पकड़ो चिल्ला कर लोगों को मूर्ख बना रहा है . राडिया कांड इतनी जल्दी भुला दिया जायेगा सोचा नहीं था . बहरहाल , आपकी आशाएं ईश्वर पूरी करे , मुझे तो इस आन्दोलन से कोई खास उम्मीद नहीं है .
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