सुप्रसिद्ध कहानीकार श्री बलराम का कहानी संग्रह ' गोआ में तुम ' अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है . इस संग्रह में 15 कहानियां हैं . हमारे समय की विसंगतियों पर लिखी गई इन कहानियों में पाठक अनेक तरह के प्रश्नों से रूबरू होता है . लेखन कर्म की यह सबसे बड़ी चुनौती होती है की वह अपने पाठक के सामने प्रश्न खड़े करे . समाधान खोजना रचना का काम नहीं होता है . और न ही अपने पाठकों को उपदेश देना लेखक का काम है.नारी की स्वतंत्रता पर बड़ी चर्चा की जा रही है और झांसे में फंसी वह भी अपने को आजाद मानने लगी है पर हालात कुछ और ही हैं लेखक ने इसे लिखा है '' बचपन से ही सुनती आई हूँ की जीवित बचे रहने के लिए लडकी को कदम - कदम पर
समझौते करने पड़ते हैं . '' [ प्रष्ठ 15 ] लेखक के पास बड़ी पैनी निगाह है जो पूरे पाखंड को समझ कर बात को पूरी साफ़ गोई के साथ सामने रखता है . ये कहानियाँ मानवीय सरोकारों , और बदलते मनोविज्ञान पर अलग तरह से प्रकाश डालती हैं . दार्शिनिक भाव पर कई कहानियां है . बहुत महीन ताने बाने की बुनावट वाली इन काहानिओं में एक रवानगी है जो पाठक को गहरे तक बांधती है . यह लेखकीय कौशल बड़े अनुभव और धीरज से ही पैदा होता है जो लेखक की अपनी कमाई होती है . इन कहानिओं को पढ़ते हुए लिखक श्री बलराम के एक कहानीकार का सबल और सफल रूप सामने आता है .
पुस्तक --- गोआ में तुम लिखक --- श्री बलराम
प्रकाशक भावना प्रकाशन , 109 ,
पटपड गंज , दिल्ली 91
मूल्य --- र - 150
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें