रविवार, 20 फ़रवरी 2011

हिंदी साहित्य में इन दिनों

हिन्दी साहित्य में इन दिनों
 सक्रीय है चार जन
 पहले हैं फतवाचंद
 दुसरे  हैं संपूर्णानंद  नन्द
 तीसरे हैं आसी राम
 चौथे हैं घासी राम
 ये चारो महाजन
 पांचवें आम जन को जगाते हैं
 उसे गरियाते; रिरयाते
 अपनी वेदना सुनाते हैं
 पांचवां जन ; इन से पीछा छुड़ा
 वह स्वंम में लीन है
 उसके लिए साहित्य सब
 भैंस के आगे वाली बीन है
 इक छटा जन  और है
 जो आलोचक कलाता है
 इन चारो की हल चल पर
 वह जोर से गुर्राता  है
 डपटता और ललकारता है
 अनुसाशन बनाए रखने के नाम पर
 अपना लंगोट इन पर घुमाता है
 इस पूरे प्रहसन में सातवां एक और है
 जो चारो महाजनों का बाप है
 इनके परिश्रम की मलाई
 ठाठ से  खाता है
 पक्का घंधेवाज
 यह सातवाँ प्रकाशक कहलाता है

2 टिप्‍पणियां:

Jawahar choudhary ने कहा…

आंठ्वे को भूलो मत
पाठक को छोडो मत
कूड़ा कचरा सब चलता
उसकी कोई मांग नहीं
बिरादरी ने लिखा
बिरादरी ने बांचा
की वाह वाह सबने
पाठक को पता चला नहीं
टूटे सारे उसके सपने .

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami ने कहा…

सटीक कविता । बहुत खूब ।