हिन्दी साहित्य में इन दिनों
सक्रीय है चार जन
पहले हैं फतवाचंद
दुसरे हैं संपूर्णानंद नन्द
तीसरे हैं आसी राम
चौथे हैं घासी राम
ये चारो महाजन
पांचवें आम जन को जगाते हैं
उसे गरियाते; रिरयाते
अपनी वेदना सुनाते हैं
पांचवां जन ; इन से पीछा छुड़ा
वह स्वंम में लीन है
उसके लिए साहित्य सब
भैंस के आगे वाली बीन है
इक छटा जन और है
जो आलोचक कलाता है
इन चारो की हल चल पर
वह जोर से गुर्राता है
डपटता और ललकारता है
अनुसाशन बनाए रखने के नाम पर
अपना लंगोट इन पर घुमाता है
इस पूरे प्रहसन में सातवां एक और है
जो चारो महाजनों का बाप है
इनके परिश्रम की मलाई
ठाठ से खाता है
पक्का घंधेवाज
यह सातवाँ प्रकाशक कहलाता है
सक्रीय है चार जन
पहले हैं फतवाचंद
दुसरे हैं संपूर्णानंद नन्द
तीसरे हैं आसी राम
चौथे हैं घासी राम
ये चारो महाजन
पांचवें आम जन को जगाते हैं
उसे गरियाते; रिरयाते
अपनी वेदना सुनाते हैं
पांचवां जन ; इन से पीछा छुड़ा
वह स्वंम में लीन है
उसके लिए साहित्य सब
भैंस के आगे वाली बीन है
इक छटा जन और है
जो आलोचक कलाता है
इन चारो की हल चल पर
वह जोर से गुर्राता है
डपटता और ललकारता है
अनुसाशन बनाए रखने के नाम पर
अपना लंगोट इन पर घुमाता है
इस पूरे प्रहसन में सातवां एक और है
जो चारो महाजनों का बाप है
इनके परिश्रम की मलाई
ठाठ से खाता है
पक्का घंधेवाज
यह सातवाँ प्रकाशक कहलाता है
2 टिप्पणियां:
आंठ्वे को भूलो मत
पाठक को छोडो मत
कूड़ा कचरा सब चलता
उसकी कोई मांग नहीं
बिरादरी ने लिखा
बिरादरी ने बांचा
की वाह वाह सबने
पाठक को पता चला नहीं
टूटे सारे उसके सपने .
सटीक कविता । बहुत खूब ।
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